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पढ़ते-पढ़ते, इतना अच्छा लिखने लगूंगी, कि पुरस्कार मिलेंगे, सोचा न था..

सप्ताह का साक्षात्कार

लेखन शुरू ही किया तो लिखा हुआ जांचने के लिए सुनाने की इच्छा तीव्र हुई और जब कवि गोष्ठियों में गुनगुनाया तो श्रोताओं को इतना पसंद आया कि कुछ ही माह में चार-पांच साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत कर दिया गया। सिर्फ मध्यप्रदेश ही नहीं उत्तरप्रदेश और छत्तीसगढ़ में अटल गौरव अवार्ड से भी सम्मानित किया गया। निर्भया सामाजिक महिला कल्याण संस्था द्वारा हिंदी भवन में पुरस्कृत किया गया तो राष्ट्रीय शब्दाक्षर संस्था द्वारा उत्तरप्रदेश में सम्मानित किया गया। किसी नवोदित कवयित्री के लिए यह प्रोत्साहन किसी उपलब्धि से कम नहीं। प्रस्तुत है राजधानी की कवयित्री डॉ. प्रियंका ‘‘प्रियांजलि’’ से

बातचीत के प्रमुख अंश:-

1. आप तो शिक्षा जगत से हैं, कविता लेखन यात्रा कैसे शुरू हुई?

जी! मेरे कॅरियर की शुरूआत पुस्तकालय से हुई, लेकिन जॉब लगने के बाद भी पढ़ाई नहीं छोड़ी। पीएचडी की। इन्हीं दिनों पुस्तकालय में औरों को पढ़ते देखती तो मैं भी एकदम शांत वातावरण में जब कभी अवसर मिलता, पाठकों के साथ पुस्तक पढ़ने लगती। पढ़ने का शौक तो था ही। कई लेखकों को पढ़ने के बाद लगा कि मुझे भी लिखना चाहिए। मैं भी लिख सकती हूंॅ। शुरूआत छोटी-मोटी तुकबंदी से की। फिर यह सिलसिला चलता रहा। कुछ कवियों को भी सुना तो बाद मैंने सही रूप में लिखना शुरू किया और साहित्यिक कार्यक्रमों, काव्य गोष्ठियों में शामिल होकर प्रोत्साहन मिला।

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2. कवयित्री के रूप में कैसे पहचान मिली?

वैसे मैं एक निजी महाविद्यालय में वरिष्ठ सहयोगी के रूप में कार्यरत हूं। जब मेरे साथियों को लेखन का पता चला, तो उन्होंने मुझे काव्य गोष्ठियों में आमंत्रित किया। वरिष्ठ कवियों ने मेरी रचनाओं को सराहा तो मैंने नए-नए विषयों पर लिखना जारी रखा। जब भी समय मिलता कागज पर शब्दों को उतार लेती। फिर कई बार पढ़कर उन्हें संशोधित करते-करते जब लगता कि ठीक-ठाक कविता बन गई है तो वह कविता सुनाने के लिए अच्छी तरह से डायरी में लिख लेती।

3. लेखन में आपकी प्रेरणा क्या है?

मन के उद्गार हैं। कार्यालय में रहते हुए और कई बार घर पर विचारमग्न रहते हुए जब किसी से कुछ कह नहीं पाती तो उन्हें काग़ज पर उतारने लगी। प्रारंभिक कुछ कविताएं मेरे मन के उद्गार ही हैं। मैं कैसा सोचती हूंॅ, क्या चाहती हूॅं उन्हंे ही शब्दों में उकेरने लगी। इससे मुझे आत्मिक शांति मिलती। चाहे प्रसन्नता का अवसर हो या उदासी का समय पुरानी यादें, अब तक का जीवन सबको लेखन में उतारने का प्रयास करने लगी। पहले व्यस्तताओं के कारण लिखने का समय नहीं मिल पाता था, लेकिन अब समय मिलने पर कलम उठा लेती हूं। मेरा एकाकीपन मुझे लिखने को प्रेरित करता है।

4. आपके लेखन के विषय कौन-कौन से होते हैं?

मैंने पर्यावरण, मित्रता, बचपन, नारी संघर्ष आदि विषयों पर लिखा है। मेरी एक कविता मुझे बहुत प्रिय है, हालांकि यह कविता अतुकांत है, पर भाव बहुत सुंदर हैं, जो इस प्रकार है:-
‘‘नहीं कामना आसमान की, न कोई ऊॅंचाई चाहिए,
न चाहूं मैं चांदी सोना, न कोई भी स्वार्थ चाहिए
कलयुग के इस अज्ञातवास में जीवन के निर्जन प्रवास में
साथ निभाने, सुपथ बताने, अंतर्मन का तिमिर मिटाने,
बस एक सच्चा मित्र चाहिए!
नर हो चाहे नारी हो, बस सच्चा हो, वो निश्छल हो
जो समझे मेरे अंतर्मन को, कभी विमुख न मुझसे हो
सर्पीले पथ पर संग-संग चलने, भ्रम जालों में नहीं उलझने
सन्मार्ग दिखाने, स्नेह बरसाने, भ्रमित पथिक को राह दिखाने
बस एक सच्चा मित्र चाहिए!’’

5. आपकी सबसे बड़ी उपलब्धि क्या है?

काव्य गोष्ठियों में कविताएं साझा की हैं और लोगों की सराहना मिली है। बड़ी उपलब्धि तो यही है कि श्रोताओं द्वारा मेरी कविताओं को सराहा जा रहा है और बड़ी बात यह कि वरिष्ठ कवियों द्वारा प्रसंशा की जा रही है।

6. अपने जैसे नवोदित कवियों के लिए क्या संदेश देना चाहेंगी?

यही कि लिखते रहें और खूब पढ़ें। दूसरों को सुनें और प्रोत्साहित करें। किसी भी मंच पर केवल अपना सुनाने के लिए न जाएं, बल्कि औरों को भी सुनें। और जो केवल इसमें अपना भविष्य देखते हैं, वे अच्छे-से-अच्छा लिखने का प्रयास करें और अपने से बड़े, अनुभवी कवियों से मार्गदर्शन अवश्य प्राप्त करते रहें।

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