
संवाददाता अवधेश चौकसे
नेपाल में हाल ही में एक असामान्य और चिंताजनक घटना सामने आई जब लांगटांग क्षेत्र में स्थित याला ग्लेशियर को मृत घोषित किया गया और उसका प्रतीकात्मक अंतिम संस्कार किया गया। यह घटना दुनिया भर के पर्यावरण विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों के लिए एक गंभीर चेतावनी बनकर उभरी है।
इस शोक सभा में भारत, चीन और भूटान सहित कई देशों के ग्लेशियोलॉजिस्ट शामिल हुए। उन्होंने स्थानीय समुदायों के साथ मिलकर उस हिमखंड के खो जाने का शोक व्यक्त किया, जो कभी जीवनदायिनी जलधाराओं का स्रोत हुआ करता था।
तीसरी बार दुनिया ने मनाया ग्लेशियर का मातम
याला ग्लेशियर की ‘मौत’ दुनिया में इस तरह की तीसरी घटना है। इससे पहले आइसलैंड के ओक ग्लेशियर (2019) और मेक्सिको के आयोलोको ग्लेशियर (2021) को मृत घोषित किया जा चुका है। याला ग्लेशियर, जो समुद्र तल से 5100 मीटर की ऊंचाई पर स्थित था, पिछले कुछ दशकों में 66% तक सिकुड़ चुका था और लगभग 784 मीटर पीछे खिसक गया था।
जलवायु परिवर्तन की कठोर चेतावनी
वैज्ञानिकों ने स्पष्ट किया कि ग्लेशियर की इस तरह की ‘मृत्यु’ जलवायु परिवर्तन के भयावह प्रभावों की ओर इशारा करती है। यदि यही स्थिति बनी रही तो हिमालयी क्षेत्र के 54,000 से अधिक ग्लेशियर इस सदी के अंत तक समाप्त हो सकते हैं। इसका सीधा असर स्वच्छ जल की उपलब्धता, कृषि, जैव विविधता और मानव जीवन पर पड़ेगा।
स्थानीय लोगों की भागीदारी, वैज्ञानिकों की चेतावनी
इस कार्यक्रम में भाग लेने के लिए वैज्ञानिकों और स्थानीय लोगों ने ऊंचे और कठिन ट्रैक की यात्रा की। कार्यक्रम के अंत में वैज्ञानिकों ने मानव जाति को चेतावनी दी कि अगर ग्लोबल वॉर्मिंग और कार्बन उत्सर्जन पर तत्काल नियंत्रण नहीं पाया गया, तो भविष्य में ऐसी ‘मौतों’ की संख्या लगातार बढ़ सकती है।