यह कैसा उन्माद है! पहलगाम की घटना पर संवेदनाएं

शांत नीले आकाश तले,
हरी-भरी वादी में पसरी थी शांति।
अचानक घुली बारूद की गंध,
चीत्कारें चीर गईं उस चुप्पी को।
वे आए थे अँधेरे से,
हाथों में लिए नफ़रत की आग।
निर्दोषों के सपनों को मसल दिया,
रक्त से रंग दी धरती की हरी चादर।
माँ की आँखों में भय का सागर,
पिता के हाथों में असहायता की जकड़न।
बच्चों की किलकारियाँ गुम हो गईं,
आतंक के दानव ने छीन ली उनकी हँसी।
यह कैसा उन्माद है,
जो मानवता को लहूलुहान करता है?
क्यों मासूमों की जान इतनी सस्ती है,
कि पल भर में उसे मिटा दिया जाए?
रोष की ज्वाला धधकती है मन में,
हर उस कायर पर जो हिंसा का पुजारी है।
संवेदना का सागर उमड़ता है हृदय में,
उन परिवारों के लिए जिन्होंने अपनों को खोया।
यह धरती वीरों की है,
शांति और प्रेम का संदेश यहाँ गूँजता है।
आतंक के ये काले बादल,
इस ज्योति को कभी बुझा नहीं सकते।
हम उठेंगे, एकजुट होकर,
इस नफ़रत की दीवार को गिराएंगे।
हर आँसू का हिसाब लिया जाएगा,
शांति की स्थापना ही हमारा संकल्प होगा।
पहलगाम की चीखें व्यर्थ नहीं जाएंगी,
यह बलिदान एक क्रांति की मशाल बनेगा।
यह लहू बोलेगा, हर ज़ुल्म का प्रतिकार होगा,
अब और नहीं सहेंगे, न्याय का हुँकार होगा।
अमन की ध्वजा उठेगी, आतंक का संहार होगा,
भारत का यह स्वर्ग फिर से गुलज़ार होगा।
विनम्र श्रद्धांजलि
✒️सुशील शर्मा✒️