वो दीपावली “संस्मरण”
वो दीपावली “संस्मरण”
लेखक :- सुशील शर्मा
आज मैं दीपावली की सफाई में पत्नी का हाथ बटा रहा था कि अचानक मेरे हाथ में अपने गांव की पुरानी फोटो लग गई जिसमे पूरा परिवार एक साथ था। पुरानी श्वेत- श्याम फोटो जो की किनारों से गल चुकी थी। मैंने बहुत प्यार से उस फोटो को साफ किया और मेरे जेहन में गांव का वह टूटा फूटा घर उमड़ने लगा। मुझे याद है पिताजी नौकरी के कारण पास के शहर में रहने लगे थे मैं अपने छोटे भाई के साथ शहर में ही पढ़ता था। दीपावली की छुट्टी में अपने माता पिता के साथ अक्सर गांव जाता था। मुझे गांव वाले टूटे फूटे मकान में इतनी सुखद अनुभूति होती थी जिसका मैं बयान नहीं कर सकता। दादी का वह इन्तजार करता चेहरा चाचा लोगों का वह अपनापन आज आज भी मुझे बहुत सालता है। मुझे याद है जब छुट्टी में मैं अपने गांव पहुँचता था तो दादी गांव के बाहर मेरा इन्तजार करते मिलती थी दौड़ कर मैं और छोटा भाई दादी की गोदी चढ़ जाते थे और दोनों भाइयों को वह बूढी दादी अपने अंक से लगाए हुए घर तक ले आती थी।
गांव के सब लोग इकट्ठे मिलने आते थे पापाजी के सब दोस्त रात रात भर बैठ कर गप्पें लड़ाते थे माँ की सहेलियां इतने सारे खाने बना बना कर खिलाती थी कि हम लोग अघा जाते थे। फिर दीपावली के दिन गांव के सभी बच्चे दीवाल फोड़िया फटाखों साथ ऊधम मचाते हुए गांव के कई चक्कर लगाते थे। बाजार से दादी हम लोगों के लिए खोवा की मिठाई और जलेबी लेकर आती थी और बड़े प्यार के साथ गोदी में बिठा कर खिलाती थी।
क्यों किस की यादों खोये हो “पत्नी ने शरारत से पूछा।
“कुछ नहीं पुरानी कुछ यादें है जो बहुत याद आ रही हैं “मैंने भी शरारत में उत्तर दिया।
चलो इस बार दीपावली पर अपने गांव चलते हैं “पत्नी ने मेरे हाथ से फोटो लेते हुए कहा।
“अब गांव में कुछ नहीं बचा दादी कब की शांत हो गईं हैं चाचा लोग अपने अंतिम समय पर हैं बाकि के रिश्ते अब उतने समझदार नहीं कि उनके पास जाकर रुका जाये “मैंने लम्बी साँस भर कर उत्तर दिया।
“अच्छा एक काम करते हैं हम कुछ घंटों के लिए ही गांव जायेंगे और सब से मिल कर लौट आयेंगें “मेरी पत्नी ने सुझाव दिया।
मुझे भी गांव देखने की बहुत इच्छा हो रही थी मैंने भी हामी भर दी हम लोग अपनी गाड़ी में बच्चों के साथ सवार होकर गांव की और रवाना हो गए ।
उन रास्तों पर से गुजरते हुए चालीस साल पुरानी यादें ताजा हों गईं लगा मेरे अंदर का बच्चा जाग गया मेरी पत्नी और बच्चे मुझे बड़े आश्चर्य से देख रहे थे। जैसे ही गांव के उस छोर पर पहुंचे जहाँ पर मेरी दादी मेरा इन्तजार करती थी मैंने ड्राइवर से गाड़ी रोकने को कहा और तेजी से गाड़ी से निकल कर उस और दौड़ा जैसे मैं अपनी दादी की और दौड़ता था। मेरी पत्नी समझ गई वो मुस्कुराती हुई ड्राइवर से बोली उन्हें जाने दो तुम मेरे बताये हुए रास्ते से घर को चलो।
मैं खेतों में से दौड़ता हुआ नदी पर पहुंचा बगैर आजू – बाजू देखे मैंने फटाफट कपडे उतार कर नदी में छलांग लगा दी फिर अमरूदों के बगीचे से घूमता हुआ पुराने मंदिर पहुंचा जहाँ पर हम छिया छिलाई और लुक्का छिप्पी खेलते थे। कुछ देर वहां रुक कर फिर सीताफल के बगीचे में पहुंचा जहाँ पर हम सभी बच्चे छुप कर सीताफलों की चोरी करते थे। उस बगीचे का मालिक तो शायद स्वर्गवासी हो चुका था उसके बच्चे उस बगीचे की देखभाल करते थे। मैंने कुछ सीताफल ख़रीदे मैंने पैसे देने चाहे किन्तु मेरा परिचय जानकार उन्होंने बहुत सम्मान के साथ मना कर दिया सीताफल मेरी पत्नी का पसंदीदा फल है।
बाजार में पहुँच कर मैंने कुछ खाने की चीजें लीं और अपने पुराने मित्रों के घर उनसे मिलने पहुंचा अधिकांशतः वृद्ध हो चुके थे कई की स्थिति बहुत खराब थी गरीबी के कारण आज भी उन्ही खपरैलों के मकानों में जिंदगी जी रहे थे। मुझ से मिलकर सभी अत्यंत प्रसन्न हुए मैंने जो भी सामान खरीदा था उन सबके बच्चों और नाती पोतों में बाँट दिया। जब मैं वापिस अपने गांव के मकान में जाने लगा तो सब इक्कट्ठे होकर मुझे छोड़ने आये हम सब गांव की गलियों में से निकल रहे थे तो ऐसा लग रहा था कि हम सब बच्चे बन गए हों।
मैंने कुछ दीवाल फोड़िये पटाखे दीवालों पर मार कर फोड़े मेरे सभी पुराने दोस्त अचरज से मुझे देख रहे थे। उनकी आँखों में ख़ुशी थी कि मैंने शायद बचपन के कुछ पल उनको लौटा दिए।
सभी रिश्तेदारों से यथायोग्य मिल कर जब हम लौट रहे थे तो मैंने अपनी पत्नी को सीताफल खिलाते हुए उसका धन्यवाद किया क्योंकि उसके कारण आज मेरी यह दीपावली मेरे प्रौढ़ होते जीवन में उमंगों के दीप जला गई थी।