रविवारीय विशेष…… “महुंआ” एक प्रेम कथा

संकलनःअवधेश चौकसे (सालीचौका)
बैसे तो महुंआ दारू के लिए बहुत बदनाम हैं, इसे इस्तेमाल करने वाले तो और भी हेय दृष्टि से दैखें जातें हैं उन्हें ठर्रा छाप, जंगली, गवांर पियक्कड़ आदि न जाने कितनी संज्ञा दी जाती हैं लेकिन कभी इसके इस्तेमाल करने वालो की सेहत दैखी हैं ये अंग्रेजी पीने वाले शहरवासियों से अधिक तंदुरुस्त फुर्तीलें रहते,हैं बैचारा *महुंआ* जबरन बदनाम हैं,लेकिन
इसके फूल की माध्वी ,फल,व गुठली का तेल बहुत गुणकारी व पोष्टिक भी है, इसकी पत्तियाँ फूलने के पहले फागुन-चैत में झड़ जाती हैं। पत्तियों के झड़ने पर इसकी डालियों के सिरों पर कलियों के गुच्छे निकलने लगते हैं जो कूर्ची के आकार के होते है। इसे महुंए का कुचियाना कहते हैं। कलियाँ बढ़ती जाती है और उनके खिलने पर कोश के आकार का सफेद फूल निकलता है जिसका गुदारा दोनों ओर खुला हुआ होता है और इसके भीतर जीरे होते हैं। यही फूल खाने के काम में आता है और
‘महुंआ‘ कहलाता है। महुंए का फूल बीस-बाईस दिन तक लगातार टपकता है। महुंए के फूल में चीनी का प्रायः आधा अंश होता है, इसी से पशु, पक्षी और मनुष्य सब इसे चाव से खाते हैं। इसके रस में विशेषता यह होती है कि उसमें रोटियाँ पूरी की भाँति पकाई जा सकती हैं। इसका प्रयोग हरे और सूखे दोनों रूपों में होता है। हरे महुंए के फूल को कुचलकर रस निकालकर पूरियाँ पकाई जाती हैं और पीसकर उसे आटे में मिलाकर रोटियाँ बनाते हैं। जिन्हें
‘महुअरी‘ कहते हैं। सूखे महुंए को भूनकर उसमें पियार, पोस्ते के दाने आदि मिलाकर कूटते हैं। इस रूप में इसे ‘लाटा’ कहते हैं। इसे भिगोकर और पीसकर आटे में मिलाकर ‘महुअरी’ बनाई जाती है। हरे और सूखे महुंए लोग भूनकर भी खाते हैं। गरीबों के लिये यह बड़ा ही उपयोगी होता है। यह गायों, भैसों को भी खिलाया जाता है जिससे वे मोटी होती हैं और उनका दूध बढ़ता है। इसे लगभग आठ दिन ठंडे पानी में गला कर शराब भी खींची जाती है। महुंए की शराब को संस्कृत में ‘ माध्वी’ और आजकल के गँवरा ‘ठर्रा’ कहते हैं। महुए का सूखा फूल बहुत दिनों तक रहता है और बिगड़ता नहीं।।
इसके बाद फल निकता हैं जिसे गुली, गुलीया गिलोंदा कहते हैं.यह फल जिसका छिलका उतारकर खाने में बहुत मीठा होता हैं और स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता हैं, वहीं इसे बैशाख जेष्ठ माह में धूप में सुखाया जाता है और उसकी गुठली निकलने के बाद देशी कोलू में तेल निकाला जाता हैं जिसे गांव देहात में गुलीया तैल भी कहा जाता है. इसके तेल में अत्यधिक पोषक तत्व होते हैं और पोष्टिक होता हैं इसका सबसे ज्यादा उपयोग आदिवासी करते हैं। आदिवासियों के अनुसार
महुआ(गुलीया) का तेल बालों के लिए कई तरह से फायदेमंद होता है, जैसे कि बालों को मजबूत बनाना, झड़ने से रोकना, रूसी और रूखेपन से राहत दिलाना, और बालों की ग्रोथ को बढ़ावा देना.
महुआ के तेल के बालों के लिए फायदे:
मजबूत और स्वस्थ बाल:
महुआ के तेल से बालों की जड़ों तक मालिश करने से बाल मजबूत होते हैं और बालों का झड़ना कम होता है.
रूसी और खुजली से राहत
महुआ का तेल रूसी और खुजली की समस्या से राहत दिलाता है.
रूखेपन से राहत:
महुआ का तेल बालों को रूखेपन से बचाता है और उन्हें मुलायम बनाता है.
बालों की ग्रोथ में मदद:
महुआ के तेल को मेहंदी के तेल में मिलाकर लगाने से बालों की ग्रोथ बढ़ती है.
शाइनी बाल:
महुआ का तेल बालों को चमकदार बनाता है.
सफेद बालों को काला करने में मदद:
महुआ के तेल को रोजमैरी के तेल के साथ मिलाकर लगाने से सफेद बालों को काला करने में मदद मिल सकती है.
बालों की जड़ों में महुआ के तेल से मालिश करें और कुछ देर के लिए छोड़ दें, फिर धो लें.
मेहंदी के तेल में महुआ के तेल की कुछ बूंदें मिलाकर लगाएं.
रोजमैरी तेल के साथ महुआ के तेल को मिलाकर लगाने से भी बेहतर परिणाम मिल सकते हैं.
ध्यान दें: महुआ के तेल का इस्तेमाल करने से पहले, अपनी त्वचा पर थोड़ी सी मात्रा में लगाकर जांच लें कि आपको कोई एलर्जी नहीं है.।
महुंआ की ठंडः मार्च अप्रैल में सुबह सुबह जिन इलाकों में महुंआ के बृक्ष अधिक होते हैं वहां महुंआ फूल गिरने के साथ ठंड भी लगती हैं।