भूख से बिलखते बेजुबानों की मसीहा बनीं सोनू विश्वकर्मा, गाडरवारा में खुद के खर्च पर हर रात 100 रोटियां और 20 लीटर दूध लेकर पहुंचती हैं चौक-चौराहों पर

गाडरवारा। एक ओर जहां शहर की गलियों में बेसहारा जानवर भूख-प्यास से दर-दर भटक रहे हैं, वहीं दूसरी ओर शिवाजी वार्ड निवासी श्रीमती सोनू विश्वकर्मा इन बेजुबानों के लिए मसीहा बनकर सामने आई हैं। बिना किसी सरकारी सहयोग या प्रचार की इच्छा के, यह महिला पिछले तीन वर्षों से हर रात खुद के खर्चे पर इन जानवरों को भोजन करवा रही हैं।
गाडरवारा शहर के जिम्मेदार अधिकारी और जनप्रतिनिधि जहां इस समस्या की अनदेखी कर रहे हैं, वहीं सोनू विश्वकर्मा की यह सेवा न सिर्फ अनुकरणीय है, बल्कि समाज के लिए एक संदेश भी है कि करुणा और जिम्मेदारी केवल सरकार से नहीं, नागरिकों से भी शुरू होती है।
हर रात का बना नियम
श्रीमती विश्वकर्मा प्रतिदिन करीब 100 रोटियां और 20 लीटर दूध से एक मिश्रण तैयार करती हैं और ऑटो से शहर के प्रमुख चौक-चौराहों पर जाकर उन स्थानों पर यह भोजन परोसती हैं जहां अधिकतर आवारा कुत्ते दिखाई देते हैं। उन्हें बाकायदा पत्तल में भोजन परोसकर खिलाया जाता है। यह सेवा निःस्वार्थ भाव से की जाती है — न कोई मंच, न कोई प्रचार, बस एक मूक करुणा की आवाज।
प्रशासन और समाज से सवाल
इस कार्य को देखकर यह सवाल उठता है कि जब एक आम नागरिक अपनी जिम्मेदारी निभा सकता है, तो प्रशासन और नगर पालिका क्यों इस दिशा में ठोस कदम नहीं उठाते? गाडरवारा शहर में सैकड़ों आवारा जानवर हैं जो हर दिन कचरे के ढेर से कुछ खाने की उम्मीद में भटकते हैं — कई बार बीमार, घायल और भूखे रह जाते हैं।
समाज को प्रेरणा
सोनू विश्वकर्मा का यह कार्य सिर्फ एक सेवा नहीं, एक प्रेरणा है — एक उदाहरण है मानवीयता का, करुणा का और निस्वार्थता का। ऐसे लोगों को समाज से सम्मान और प्रशासन से सहयोग मिलना चाहिए।
इस लेख का उद्देश्य किसी को आहत करना नहीं, बल्कि उन बेजुबान प्राणियों की व्यथा को सामने लाना है, जो केवल हमारी संवेदनाओं के मोहताज हैं।