
मुंबई। भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) की पूर्व प्रमुख माधबी पुरी बुच के खिलाफ भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों में मुंबई की विशेष अदालत ने एंटी करप्शन ब्यूरो (ACB) को एफआईआर दर्ज करने के निर्देश दिए हैं। अदालत ने SEBI और बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE) के छह अन्य अधिकारियों के खिलाफ भी मामला दर्ज करने को कहा है।
क्या हैं आरोप?
- SEBI ने कथित रूप से ऐसी कंपनियों को लिस्टिंग की मंजूरी दी, जो नियामकीय मानकों को पूरा नहीं कर रही थीं।
- इन फैसलों से बाजार में हेरफेर हुआ और निवेशकों को भारी नुकसान उठाना पड़ा।
- शिकायतकर्ता के अनुसार, SEBI और कई कॉर्पोरेट संस्थाओं के बीच मिलीभगत थी, जिससे इनसाइडर ट्रेडिंग (गुप्त सूचना के आधार पर शेयरों की खरीद-फरोख्त) और वित्तीय घोटाले हुए।
- माधबी पुरी बुच और उनके पति धवल बुच पर आरोप है कि वे अडानी समूह से जुड़े विदेशी निवेश फंड्स में हिस्सेदारी रखते थे, लेकिन उन्होंने SEBI प्रमुख रहते हुए इस जानकारी को सार्वजनिक नहीं किया।
कोर्ट ने क्यों दिए FIR के आदेश?
ठाणे के पत्रकार सपन श्रीवास्तव की याचिका पर सुनवाई करते हुए विशेष भ्रष्टाचार निरोधक अदालत के न्यायाधीश शशिकांत एकनाथराव बांगर ने पाया कि मामले में प्रथम दृष्टया गंभीर सबूत मौजूद हैं। अदालत ने निष्पक्ष जांच की आवश्यकता जताई और ACB को 30 दिन के भीतर मामले की प्रारंभिक रिपोर्ट सौंपने का आदेश दिया।
SEBI की साख पर सवाल
इस फैसले से न केवल SEBI की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े हुए हैं, बल्कि भारतीय शेयर बाजार की निष्पक्षता पर भी बहस छिड़ गई है। निवेशकों और बाजार विशेषज्ञों का मानना है कि यदि इन आरोपों की पुष्टि होती है, तो यह भारतीय वित्तीय प्रणाली के लिए बड़ा झटका साबित हो सकता है।
आगे की कार्रवाई
ACB अब इस मामले की विस्तृत जांच करेगी और यदि आरोप सही पाए जाते हैं, तो पूर्व SEBI प्रमुख माधबी पुरी बुच और अन्य अधिकारियों पर कानूनी कार्रवाई की जाएगी। इस मामले का असर शेयर बाजार और कॉर्पोरेट जगत में देखने को मिल सकता है।