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लकवा (पक्षाघात) से पीड़ित मरीजों के लिए आयुर्वेदिक उपचार बना जीवनदायिनी, लाखों को मिली राहत

लकवा (पक्षाघात) से पीड़ित मरीजों के लिए आयुर्वेदिक उपचार बना जीवनदायिनी, लाखों को मिली राहत

नई दिल्ली। लकवा (पैरालिसिस), जिसे आम भाषा में पक्षाघात भी कहा जाता है, एक गंभीर स्थिति है, जिसमें शरीर के किसी अंग या अंगों की मांसपेशियां पूरी तरह से कार्य करना बंद कर देती हैं। यह समस्या सामान्यतः 50 वर्ष से ऊपर के लोगों में अधिक देखी जाती है, लेकिन यह किसी भी उम्र में हो सकती है, खासकर अगर व्यक्ति मानसिक या शारीरिक रूप से अत्यधिक तनाव में रहता है।

हालांकि इस रोग का इलाज मुश्किल माना जाता है, लेकिन आयुर्वेदिक उपचार और घरेलू उपायों ने लाखों लोगों को राहत दी है और उन्हें स्वस्थ जीवन जीने का अवसर प्रदान किया है। चिकित्सा क्षेत्र में यह एक क्रांतिकारी बदलाव माना जा रहा है।

लकवा के प्रमुख कारण

लकवा होने के कई कारण हो सकते हैं, जिनमें से प्रमुख कारण हैं:

1. शरीर के अंगों का दबना:

शरीर के किसी अंग का लंबे समय तक दबा रहना, जैसे कि सोते समय अंगों का दबना, रक्त संचार को बाधित कर सकता है, जिससे लकवा हो सकता है। रक्त संचार रुकने से तंत्रिका तंत्र में कमजोरी आ जाती है और अंग सुन्न हो जाते हैं।

2. अम्लीय पदार्थों का सेवन:

अम्लीय खाद्य पदार्थों का अधिक सेवन करने से रक्त में अम्ल की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे धमनियों में अवरोध पैदा होता है। यह रक्त प्रवाह को रोकता है और लकवे का कारण बन सकता है।

3. मानसिक तनाव:

अत्यधिक मानसिक तनाव, चिंता और तनाव की स्थिति में मस्तिष्क में खून का जमाव हो सकता है, जो लकवा का कारण बन सकता है।

लकवे के लक्षण और पहचान

लकवे के प्रमुख लक्षणों में किसी अंग का कमजोर होना, हाथ-पैरों में सुन्नपन, चेहरे का एक हिस्सा टेढ़ा होना, बोलने में परेशानी आना और शरीर के किसी हिस्से का पूरी तरह से काम करना बंद कर देना शामिल हैं। यदि इन लक्षणों का समय रहते इलाज नहीं किया जाए, तो व्यक्ति को अपाहिज होने का सामना करना पड़ सकता है।

आयुर्वेदिक उपचार और घरेलू उपाय

लकवे के इलाज में आयुर्वेद और घरेलू उपचार के उपायों ने अचूक सफलता प्राप्त की है। आयुर्वेद में कई प्रभावी दवाइयां और उपाय हैं, जो लकवा के उपचार में सहायक साबित हो रही हैं।

व्रहतवातचिंतामणि रस (वैदनाथ फार्मेसी):

यदि शरीर के दाहिने हिस्से में लकवा हो, तो व्रहतवातचिंतामणि रस का सेवन बेहद लाभकारी हो सकता है। इसे शुद्ध शहद के साथ लिया जाता है, जिससे यह रक्त संचार को बेहतर बनाता है और तंत्रिका तंत्र को सक्रिय करता है। इस दवा का सेवन सुबह और शाम एक गोली करने की सलाह दी जाती है।

वीर-योगेन्द्र रस (वैदनाथ फार्मेसी):

यदि शरीर का बायां हिस्सा लकवाग्रस्त हो, तो वीर-योगेन्द्र रस का सेवन शहद के साथ किया जाता है। यह दवा शरीर के बाएं हिस्से को पुनः सक्रिय करने में मदद करती है।

इसके अलावा, कलौंजी के तेल से मालिश करने और शहद और लहसुन का मिश्रण लेने से भी लकवे के मरीजों को राहत मिलती है।

आहार में सावधानियां और अन्य सुझाव

  • लकवा के उपचार के दौरान कुछ आहारों से परहेज करना भी बेहद जरूरी है।
  • लाल मिर्च, अचार, दही, छाछ, उड़द की दाल, और किसी भी प्रकार के सिरके का सेवन पूरी तरह से बंद कर देना चाहिए।
  • चिकन, मांसाहारी भोजन, तले हुए खाद्य पदार्थों और प्रोसेस्ड फूड से बचना चाहिए।
  • शुद्ध घी और चने की रोटी का सेवन करना चाहिए।
  • केवल चीकू और पपीता जैसे हल्के और पोषक फल खाएं।

विशेषज्ञों का मानना है कि शुरुआती दिनों में मालिश से बचना चाहिए और फिजियोथेरेपिस्ट से सलाह लेकर ही उपचार शुरू करना चाहिए।

समाज और परिवार का सहयोग

लकवे से पीड़ित व्यक्ति को मानसिक और शारीरिक समर्थन की बेहद आवश्यकता होती है। परिवार का साथ और समर्थन उसे मानसिक रूप से मजबूत बनाता है। इसके अलावा, सही समय पर उपचार और नियमित देखभाल से मरीज धीरे-धीरे अपनी स्थिति में सुधार देख सकता है।

विशेषज्ञों की राय

स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि लकवा के मामलों में समय पर इलाज करना और जीवनशैली में बदलाव लाना अत्यंत आवश्यक है। डॉक्टर्स का कहना है कि किसी भी प्रकार की तात्कालिक समस्या जैसे लकवा, मस्तिष्क में खून का जमाव, या उच्च रक्तचाप का इलाज समय पर होना चाहिए।

निष्कर्ष

लकवा से पीड़ित मरीजों को सही इलाज और घरेलू उपायों के साथ मानसिक और शारीरिक समर्थन प्रदान किया जा सकता है। आयुर्वेद और पारंपरिक उपचारों ने दिखा दिया है कि यह रोग पूरी तरह से ठीक किया जा सकता है। समय रहते उपचार लेने और जीवनशैली में सुधार करने से व्यक्ति फिर से एक स्वस्थ और खुशहाल जीवन जी सकता है।

 

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