गणगौर माता रानी का तीन दिवसीय पारंपरिक राजस्थानी पर्व हर्षोल्लास एवं धूमधाम से संपन्न
रंग-बिरंगे परिधान, सोलह श्रृंगार एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ मनाया गया पर्व

गाडरवारा। स्थानीय माहेश्वरी महिला मंडल के तत्वावधान में गणगौर माता रानी का तीन दिवसीय पारंपरिक पर्व बड़े ही श्रद्धा, उल्लास और भक्ति-भाव के साथ मनाया गया। यह पर्व नारी सौंदर्य, सौभाग्य और समर्पण का प्रतीक माना जाता है, जिसमें नवविवाहिताओं, युवतियों और माताओं ने विशेष उत्साह दिखाया।
प्रथम दिवस : भव्य शोभायात्रा और परंपरागत पूजन
पर्व की शुरुआत गणगौर माता की शोभायात्रा से हुई, जो चावड़ी वार्ड स्थित सेठ लझ्मी नारायण काबरा के राममंदिर से प्रारंभ होकर महावीर मंदिर (बड़े हनुमान जी) तक निकाली गई। शोभायात्रा में महिलाएं पारंपरिक राजस्थानी वेशभूषा — जैसे घाघरा, ओढ़ना एवं सोलह श्रृंगार में सज-धज कर शामिल हुईं।
बैंड-बाजों की गूंज और पारंपरिक लोक गीतों के बीच माता रानी की झांकी नगरवासियों के आकर्षण का केंद्र बनी रही। मंदिर पहुंचकर विधिवत पूजा-अर्चना की गई और पर्व की पवित्र शुरुआत हुई।
द्वितीय दिवस : सांस्कृतिक कार्यक्रम और गणगौर की उपादेयता
पर्व के दूसरे दिन गणगौर माता रानी माहेश्वरी समाज भवन, नर्मदा कॉलोनी पहुंचीं। यहां पर माहेश्वरी महिला मंडल द्वारा भव्य मंच सजाया गया, जहां महिलाओं ने सांस्कृतिक, धार्मिक एवं मनोरंजक कार्यक्रमों की प्रस्तुति दी।
नवपीढ़ी की बहनों और बहुओं ने पारंपरिक गीतों पर नृत्य कर गणगौर माता की उपासना में अपनी आस्था और उत्साह को दर्शाया। कार्यक्रम का उद्देश्य नई पीढ़ी को गणगौर पर्व की सामाजिक और धार्मिक महत्ता से अवगत कराना था।
तृतीय एवं अंतिम दिवस : नगर भ्रमण एवं बिदाई पूजन
पर्व के अंतिम दिन रामकुमार काबरा के निवास से शोभायात्रा प्रारंभ हुई, जिसमें समस्त सजातीय व राजस्थानी परिवारों की नववधुएं, युवतियां, माताएं एवं पुरुष वर्ग भी पूरे परंपरागत वेशभूषा में सम्मिलित हुए।
बैंड-बाजों के साथ शोभायात्रा झंडा चौक, पुरानी मंडी, हवेली मार्ग होते हुए वल्लभ मार्केट पहुंची। यात्रा मार्ग पर श्रद्धालुजन शोभायात्रा के स्वागत के लिए खड़े रहे। पुरानी मंडी में मालपानी परिवार द्वारा शोभायात्रा में शामिल सभी का पुष्प वर्षा एवं मिठाई वितरण कर अभिनंदन किया गया।
वल्लभ मार्केट पहुंचकर महिलाओं ने गणगौर माता की बिदाई पूजा की और एक-दूसरे को सौभाग्य की शुभकामनाएं दीं। बड़ों ने छोटों को आशीर्वाद देकर मंगलमय जीवन की कामना की।
पारंपरिक गीत-संगीत और नृत्य का आयोजन
पूरे आयोजन में पारंपरिक गीत जैसे — “गणगौर की गेंदुली” और “झाले वारने” गाए गए, जिनमें पर्व की गहराई और सामाजिक एकता की झलक थी। ढोल-नगाड़ों की थाप पर नववधुएं और युवतियां थिरकती नजर आईं, जिससे वातावरण में उत्सव का रंग और गहराया।
सोलह श्रृंगार में सजी महिलाएं बनी आकर्षण का केंद्र
पर्व के दौरान सभी महिलाएं पारंपरिक राजस्थानी परिधान जैसे घाघरा, कुर्ती, ओढ़नी पहन कर सोलह श्रृंगार में सजी थीं। उनके श्रृंगारित स्वरूप ने पूरे आयोजन में रंग भर दिए। विभिन्न रंगों की पोशाकें और मनोहारी श्रृंगार से माहौल अत्यंत आकर्षक और भक्तिमय हो गया।
आयोजन में विशेष योगदान
इस आयोजन को सफल बनाने में माहेश्वरी महिला मंडल की अध्यक्ष अनुराधा काबरा, सचिव लझ्मी काबरा, मंडल अध्यक्ष महेश मालपानी, सचिव मुरली मालानी, नवनीत पलोड (वल्लभ मार्केट) तथा प्रसादी वितरण में नरेंद्र मालपानी (विठ्ठल भवन) सहित अनेक समाजसेवियों का महत्वपूर्ण योगदान रहा।
निष्कर्ष:
गणगौर पर्व के माध्यम से गाडरवारा में पारंपरिक संस्कृति, सामाजिक समरसता और महिला सशक्तिकरण का सुंदर उदाहरण प्रस्तुत किया गया। यह आयोजन न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक रहा, बल्कि पारिवारिक और सामाजिक एकता का भी परिचायक बना।