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देश के विकाश में विपक्षी दल की भी अहम् जिम्मेदारी

देश के विकाश में विपक्षी दल की भी अहम् जिम्मेदारी

हमारी लोकतंत्र की विशेषता सत्तारूढ़ दल और विपक्षी दल की पारस्परिक जवाबदेही होती हैं जो अत्यंत महत्त्वपूर्ण विचार-विमर्श प्रक्रिया में लोगों की आकांक्षाओं व अपेक्षाओं के प्रकटीकरण में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। दुनिया के सबसे बड़े हमारे लोकतंत्र के रूप में भारत के संसदीय विपक्ष को पुनर्जीवित करना और उसे सशक्त करना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।

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लेकिन वर्तमान में हमारे देश का संसदीय विपक्ष न केवल खंडित है, बल्कि अव्यवस्थित या ध्वंसीकरण का शिकार भी नज़र आता है। क्या हमारे डेढ़ सौ करोड़ की आबादी वाले देश में संसदीय विपक्ष को सकारात्मक सोच के साथ नेतृत्व करने बाला सुदृढ़ व्यक्ति नहीं है जो हमारी अपेक्षाओं और देश उन्नति में अहम् योगदान दे सकें।

हाल के दिनों में देश के कुछ राज्यों सहित दिल्ली के विधानसभा चुनावों के परिणाम शायद यही इशारा कर रही हैं। इसका मुख्य कारण यह भी हो सकता है कि क्या पिछले दश सालों में सत्तारूढ़ पार्टी द्वारा कोई ऐसा काम नहीं किया गया जिसकी सराहना हमारे संसदीय विपक्षी दल द्वारा की गई हो या बीते वर्षों में देश के सामने कोई ऐसी संकट न उत्पन्न हुई जिसमें सभी संसदीय विपक्षी दलों को एकजुट होकर समस्या का समाधान करने में मदद की गई। यहां एक बात विशेष तौर पर गौर करने वाली है कि जब हमारे देश ही नहीं बल्कि पूरे विश्व कोरोना महामारी संकट से जूझ रही थी तब हमारे संसदीय विपक्षी दलों द्वारा एकजुट होकर समस्या से लड़ने के बजाय राजनीतिक हथकंडे अपनाते हुए तरह-तरह के आरोप प्रत्यारोप में लगे थे। हमें यह क़तई नहीं भूलना चाहिये कि देश के इन्हीं सत्तारूढ़ दल द्वारा जब विपक्ष में थे तब किस प्रकार देश के सामने उत्पन्न संकट के समय में एकजुटता दिखाई और सत्तारूढ़ दल का हौसला बढ़ाने में तत्परता देखी गई थी। यहां प्रेरणा स्रोत अटल बिहारी जी की योगदान को भुलाया नहीं जा सकता जब विपक्ष में रहते हुए भी केंद्र सरकार के समर्थन में कई बार आए थे। जैसे 1971 में बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के समय अटल जी पूरी तरह सरकार के साथ खड़े थे। यहां तक कि आपातकाल में उन्हें जेल जाना पड़ा। वहीं 1962 के युद्ध के समय जनसंघ के सारे प्रमुख नेताओं के साथ मिलकर वाजपेयी जी ने सरकार का साथ देने का निर्णय बेहद प्रेरणादायक है।

बीते वर्षों की घटनाओं व मुद्दों पर गौर करने पर ऐसा प्रतीत होता है कि हमारे विपक्षी दल के पास अपने संस्थागत कार्यकलाप के लिये या समग्र रूप से ‘प्रतिपक्ष’ के प्रतिनिधित्व के लिये कोई विजन या रणनीति नहीं है। इसीलिए हमारे संसदीय विपक्षी तंत्र को भी देश के नकारात्मक व्यक्तियों या संगठनों को उसके ख़िलाफ़ खड़ा होना चाहिए तथा हमारे देश की अंदरूनी कलह को विदेशो में प्रचार-प्रसार करने से बाज आना चाहिए। क्योंकि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में भारत के संसदीय विपक्ष को पुनर्जीवित करना और उसे सशक्त करना अत्यंत महत्त्वपूर्ण हो जाता है, विशेषकर जब लोकतंत्र का मूल्यांकन करने वाले विभिन्न सूचकांकों में इसकी वैश्विक रैंकिंग में उपर उठ रही हो।

ईं. आर के जायसवाल
राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी – राष्ट्रीय मानवाधिकार एक्शन फोरम

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