मिठाई, अगरबत्ती, नारियल, पूजा की थाली सजाकर पहुंचा किसान, कलेक्टर से बोला – “भगवान, अब तो सुन लो अर्जी”
सागर में अनोखी जनसुनवाई: 4.5 एकड़ जमीन के न्याय की गुहार को लेकर किसान ने उठाया सांकेतिक विरोध का अनूठा तरीका

सागर, मध्य प्रदेश | सागर जिले में जनसुनवाई के दौरान एक अनोखा दृश्य देखने को मिला, जब एक किसान पूजा की थाली सजाकर जिला कलेक्टर के सामने अपनी अर्ज़ी लेकर पहुंचा। मिठाई, नारियल, अगरबत्ती और फूलों से सजी थाली के साथ आए किसान ने अधिकारियों से भावनात्मक और प्रतीकात्मक रूप में अपील की – “अब तो मेरी अर्जी सुन लो भगवान।”
यह दृश्य सागर कलेक्ट्रेट परिसर में जनसुनवाई के दौरान सामने आया, जहां सत्ताढाना गांव निवासी अजीत सिंह ठाकुर अपनी जमीन के मामले को लेकर कई बार आवेदन दे चुके हैं, लेकिन कोई कार्रवाई न होने से हताश होकर उन्होंने यह अनोखा तरीका अपनाया।
क्या है पूरा मामला?
अजीत सिंह ठाकुर सागर जिले की जैसीनगर तहसील के अंतर्गत आने वाले सत्ताढाना गांव के निवासी हैं। उनका कहना है कि उनके पास कुल 9 एकड़ जमीन है, जिसमें से 4.5 एकड़ भूमि अचानक राजस्व रिकॉर्ड से “गायब” हो गई है।
इस संबंध में उन्होंने 2022 में एसडीएम कोर्ट में वाद दायर किया था। एसडीएम कोर्ट ने 26 अगस्त 2022 को उनके पक्ष में निर्णय सुनाया और भूमि उनके नाम पर बहाल कर दी गई। मगर गांव के ही एक व्यक्ति सूरज सिंह ने इस आदेश के खिलाफ कलेक्टर कार्यालय में अपील दायर कर दी। इस अपील के चलते एसडीएम का आदेश निरस्त हो गया और मामला फिर से विचाराधीन रह गया।
अब दो साल बीत चुके हैं, लेकिन इस बीच न तो दोबारा सुनवाई हुई और न ही जमीन की स्थिति स्पष्ट हुई। अजीत सिंह का आरोप है कि उन्होंने कई बार एसडीएम और कलेक्टर कार्यालय में आवेदन देकर न्याय की गुहार लगाई, मगर उन्हें केवल आश्वासन ही मिले।
“भगवान को भी खुश करने के लिए पूजा करते हैं, अब अफसरों को भी प्रसाद चढ़ा रहा हूं”
किसान अजीत सिंह ठाकुर का कहना है कि –
“जब भगवान को खुश करने के लिए हम पूजा-पाठ करते हैं, तो सोचा अफसरों को भी मिठाई, नारियल और फूल-माला चढ़ा दूं, शायद मेरी अर्ज़ी सुन ही लें। अब तो न्याय भी प्रसन्न करने से मिलता है।”
उनकी इस प्रतीकात्मक पहल ने जनसुनवाई में मौजूद सभी लोगों का ध्यान खींचा। लोगों के बीच यह दृश्य चर्चा का विषय बन गया कि किस हद तक एक किसान को अपने अधिकार के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है।
प्रशासन की भूमिका पर सवाल
यह घटना प्रशासनिक प्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े करती है। एक ओर जहाँ किसान को न्यायालय से निर्णय मिल चुका था, वहीं दूसरी ओर पुनः अपील और वर्षों की देरी यह दिखाता है कि निचले स्तर पर पारदर्शिता और जवाबदेही अभी भी दूर की चीज है।
पूरे मामले में न केवल न्यायिक प्रक्रिया की धीमी गति उजागर होती है, बल्कि यह भी सामने आता है कि ग्रामीण क्षेत्र के नागरिकों के लिए राजस्व संबंधी मामलों में न्याय पाना आज भी कितना कठिन है।
निष्कर्ष: श्रद्धा नहीं, यह सिस्टम पर व्यंग्य है
अजीत सिंह की यह ‘पूजा’ वास्तव में किसी देवी-देवता को नहीं, बल्कि प्रशासनिक तंत्र को संबोधित थी — एक व्यंग्य था उस व्यवस्था पर, जहाँ नागरिक को न्याय की बजाय प्रतीक्षा और अपीलों के चक्रव्यूह में फँसाया जाता है।