पत्रकारिता की आड़ में ब्लैकमेलिंग: सच की कीमत कौन चुकाएगा?
जब पत्रकारिता बनी ब्लैकमेलिंग का हथियार

पत्रकारिता: पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है, लेकिन जब यही पत्रकारिता धोखाधड़ी और ब्लैकमेलिंग का माध्यम बन जाए, तो इसका अंधेरा पक्ष समाज के लिए गंभीर चुनौती बन जाता है। हाल के वर्षों में, कुछ पत्रकारों द्वारा संवेदनशील जानकारी का दुरुपयोग कर जबरन धन वसूली के कई मामले सामने आए हैं। ये घटनाएँ न केवल पत्रकारिता की साख को धूमिल करती हैं, बल्कि भारतीय कानून के तहत गंभीर अपराध भी हैं।
प्रमुख ब्लैकमेलिंग मामले:
- रायपुर, 2023 – मनोज पांडेय की गिरफ्तारी:
छत्तीसगढ़ के रायपुर में ‘बुलंद छत्तीसगढ़’ के पत्रकार मनोज पांडेय को एक फर्म संचालक से लाखों रुपये वसूलने के आरोप में गिरफ्तार किया गया। उन्होंने शासकीय कार्यों में गड़बड़ी का हवाला देकर पीड़ित को धमकाया कि यदि पैसे नहीं दिए गए, तो उन्हें बदनाम कर उनके व्यवसाय को बंद करवा दिया जाएगा। - मुंगेली, 2019 – फॉरेस्ट अफसर से करोड़ों की वसूली:
छत्तीसगढ़ के मुंगेली जिले में दो वेब पोर्टल पत्रकारों ने एक फॉरेस्ट रेंजर को CBI जांच का डर दिखाकर 1.40 करोड़ रुपये वसूल लिए। उन्होंने धमकी दी कि यदि पैसे नहीं दिए गए, तो उन्हें भ्रष्टाचार के झूठे आरोपों में फंसा दिया जाएगा। - लखनऊ, 2018 – दुकानदार से ब्लैकमेलिंग:
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में दो कथित पत्रकारों ने एक दुकानदार को ब्लैकमेल कर एक लाख रुपये की मांग की। उन्होंने कहा कि यदि पैसे नहीं दिए गए, तो उसे गैस रीफिलिंग के झूठे आरोप में जेल भिजवा देंगे।
भारतीय कानून और प्रावधान:
भारतीय कानून में ब्लैकमेलिंग और जबरन वसूली को गंभीर अपराध माना गया है।
- IPC की धारा 384 के तहत, जबरन वसूली करने पर तीन साल तक की सजा या जुर्माना, या दोनों हो सकते हैं।
- IPC की धारा 388 विशेष रूप से उन मामलों पर लागू होती है, जहाँ किसी व्यक्ति को आपराधिक आरोपों के डर से ब्लैकमेल किया जाता है। इस धारा के तहत दस साल तक की सजा और जुर्माने का प्रावधान है।
निष्कर्ष:
पत्रकारिता का असली उद्देश्य सत्य को उजागर करना और समाज को जागरूक बनाना है। लेकिन जब कुछ लोग इसे धोखाधड़ी और धन उगाही का साधन बना लेते हैं, तो इससे पूरे मीडिया जगत की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न लग जाता है। ऐसे मामलों में कड़ी कानूनी कार्रवाई और सतर्कता ही इस प्रवृत्ति को रोक सकती है, ताकि पत्रकारिता की गरिमा बनी रहे और आम जनता का विश्वास बरकरार रहे।