“मैं पृथ्वी हूँ: जीवन की जननी से संकट की साक्षी तक” पृथ्वी की आत्म कथा

पृथ्वी दिवस पर विशेष आलेख -सुशील शर्मा
मैं पृथ्वी हूँ।आज जब तुम “पृथ्वी दिवस” मना रहे हो, तो मुझे भी अपने बीते हुए युगों की स्मृतियाँ ताज़ा करने का अवसर मिला है। आओ, आज सुनाती हूँ तुम्हें मेरी कहानी — मेरी अपनी ज़ुबानी।
मेरी उत्पत्ति और विकास
लगभग 4.54 अरब वर्ष पहले, एक विशाल ब्रह्मांडीय विस्फोट — जिसे तुम “सौर मंडल की उत्पत्ति” कहते हो — के बाद, धूल और गैस के बादलों से मेरा जन्म हुआ। प्रारंभ में मैं जलती हुई आग का गोला थी। ज्वालामुखियों के फटने, उल्काओं की बौछारों और घने बादलों से भरे वातावरण में मैं आकार लेने लगी। धीरे-धीरे मेरी सतह ठंडी हुई, और जीवन का प्रथम बीज अंकुरित होने का मार्ग प्रशस्त हुआ।मैं पृथ्वी हूँ — सौरमंडल की एक सुंदर, जीवंत और नीली गृहिणी। मेरा जन्म आग और धूल से हुआ, पर मेरे आंचल में जीवन ने करवट ली। समुद्रों की लहरों से लेकर पर्वतों की चोटियों तक, मेरी गोद में वनस्पतियाँ हरी-भरी हुईं, जीव जले, चले, बढ़े और पनपे।
जब तुम मनुष्य आए, तो मैं सबसे अधिक प्रसन्न हुई। तुम्हारे भीतर मैंने बुद्धि, संवेदना और सृजन का अद्भुत मेल देखा। मुझे विश्वास था कि तुम मेरी रक्षा करोगे। पर यह विश्वास धीरे-धीरे टूटने लगा।
लगभग 3.8 अरब वर्ष पहले, महासागरों ने आकार लिया। पानी की गोद में, सबसे पहले एककोशकीय जीवों ने जन्म लिया। फिर लाखों वर्षों की यात्रा के बाद, पादप और प्राणी विकसित हुए। डायनासोरों का युग आया और विलुप्त हुआ। फिर एक दिन मानव ने जन्म लिया — एक ऐसा प्राणी जो चेतना और बुद्धि का धनी था।
मानव और मेरा संबंध
मनुष्य ने प्रारंभ में मुझे माता के समान सम्मान दिया। जंगलों में रहा, नदियों का जल पीया, वनों की छांव में विश्राम किया। वह जानता था कि मैं उसका पालन-पोषण करती हूँ। वह ऋतुओं के अनुसार अपने जीवन का प्रवाह करता था। उस समय हमारा संबंध प्रेम और श्रद्धा पर आधारित था।
पर धीरे-धीरे जब मानव ने अपनी बुद्धि का उपयोग केवल अपने स्वार्थ की सिद्धि के लिए करना आरंभ किया, तब मेरा दोहन शुरू हुआ। उसने मेरे वनों को काटा, मेरी नदियों को प्रदूषित किया, मेरी वायु को विषैला बनाया, और मेरी गर्भ-गुफाओं से तेल, कोयला और खनिजों को अंधाधुंध निकालकर अपनी भूख बढ़ाई।
मैं किन समस्याओं से जूझ रही हूँ
आज मैं अनेक घावों से ग्रस्त हूँ। कुछ प्रमुख समस्याएँ इस प्रकार हैं:
1. जलवायु परिवर्तन (Climate Change)
मानव निर्मित कार्बन डाइऑक्साइड और ग्रीनहाउस गैसों के कारण मेरा तापमान बढ़ता जा रहा है। ध्रुवीय बर्फ पिघल रही है, समुद्रों का जलस्तर बढ़ रहा है, और चरम मौसम घटनाएँ (सूखा, बाढ़, तूफान) सामान्य हो गई हैं।
हर साल 1.5 करोड़ हेक्टेयर जंगल काटे जा रहे हैं।
तुम भूल गए कि पेड़ सिर्फ लकड़ी नहीं, प्राणवायु भी देते हैं।
वनों के विनाश से जैव विविधता घट रही है
वर्षा चक्र प्रभावित हो रहा है
जीवों के प्राकृतिक आवास नष्ट हो रहे हैं
2. जैव विविधता का क्षय (Loss of Biodiversity)
वनों के विनाश, शिकार, और प्रदूषण ने हजारों प्रजातियों को विलुप्त कर दिया है। हर विलुप्त प्रजाति के साथ मेरी जीवन-श्रृंखला कमज़ोर होती जा रही है।
3. भूमि और जल का प्रदूषण
रासायनिक कृषि, प्लास्टिक कचरा, औद्योगिक अपशिष्ट — इन सबने मेरी मिट्टी, नदियाँ और महासागर ज़हर से भर दिए हैं। पृथ्वी के कई हिस्से मृतभूमि में बदल रहे हैं।नदियाँ जिन्हें तुमने ‘माँ’ कहा, आज या तो सूख रही हैं या ज़हर से भरी हैं।
औद्योगिक अपशिष्ट ,रासायनिक उर्वरक प्लास्टिक कचरा
ने मेरी जलधाराओं को मार डाला है।पीने योग्य जल की अनुपलब्धता अब एक वैश्विक संकट है।
4. ओजोन परत में क्षति
कभी मेरी रक्षा करने वाली ओजोन परत को भी मानव ने क्लोरोफ्लोरोकार्बन गैसों से छेद दिया, जिससे पराबैंगनी विकिरण सीधे भूमि पर आ रहा है।
5. प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन
संसाधनों का अंधाधुंध दोहन: मेरा गर्भ छलनी हो गया है
तुम मेरी कोख से कोयला,पेट्रोल,गैस,लोहा,पानी निकालते रहे — बिना थमे, बिना सोचे। यह सब सीमित हैं। एक दिन ये चुक जाएँगे, तब तुम क्या करोगे?
तेल, कोयला, जल, खनिज — सब सीमित मात्रा में हैं, परंतु मानव इनका उपभोग ऐसे कर रहा है मानो ये अनंत हों। इससे संसाधनों का संकट गहरा गया है।
मनुष्य स्वयं को संकट में डाल रहा है
यह दुखद है कि अपनी क्षुद्र इच्छाओं की पूर्ति के लिए मानव अपने ही जीवन का आधार नष्ट कर रहा है।
— वनों का कटाव जलवायु असंतुलन ला रहा है।
— प्रदूषण के कारण श्वास लेना कठिन हो गया है।
— भूमि की उर्वरता घटने से खाद्य संकट उत्पन्न हो रहा है।
— महामारी और नई बीमारियाँ जन्म ले रही हैं।
यदि मानव ने समय रहते चेतना नहीं, तो वह स्वयं अपनी प्रजाति के अस्तित्व को खतरे में डाल देगा। मेरा जीवन चिरकालिक है; मैं घाव सह सकती हूँ, परंतु मानव सभ्यता उतनी सहनशील नहीं है।
मनुष्य को वर्तमान और भविष्य में कैसा आचरण करना चाहिए
अब भी समय है कि मानव अपने आचरण में परिवर्तन लाए: प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाए।
विकास ऐसा हो जो टिकाऊ (Sustainable) हो — प्रकृति का संरक्षण करते हुए।
पर्यावरण के प्रति संवेदनशील बनें।
वनों की कटाई रोकें, वृक्षारोपण करें। हरित क्षेत्र बढ़ाएं।
अपशिष्ट प्रबंधन सीखें।
रीसायक्लिंग को जीवनशैली का हिस्सा बनाएं। प्लास्टिक का प्रयोग घटाएं।
स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों का उपयोग करें।
सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, जल ऊर्जा — इन पर अधिक बल दें, ताकि जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता घटे।
जल और ऊर्जा का संरक्षण करें।
अनावश्यक जल-व्यय और ऊर्जा अपव्यय रोकें। हर बूंद, हर वॉट का मूल्य समझें।
शिक्षा और जनजागरण फैलाएं।
बच्चों को प्रारंभ से ही पर्यावरणीय शिक्षा दें, ताकि भविष्य की पीढ़ी अधिक जागरूक हो।
पृथ्वी एवं पर्यावरण को बचाने के उपाय
1. “एक व्यक्ति, एक वृक्ष” अभियान को जीवन का अंग बनाना।
2. स्थानीय और जैविक उत्पादों को बढ़ावा देना।
3. प्राकृतिक आवासों (वनों, नदियों, महासागरों) का संरक्षण।
4. नवीन और स्वच्छ प्रौद्योगिकियों का विकास एवं उपयोग।
5. पर्यावरणीय कानूनों का कड़ाई से पालन।
6. संयुक्त राष्ट्र के “सतत विकास लक्ष्यों (SDGs)” का अनुसरण।
7. सतत विकास (Sustainable Development)
ऐसा विकास जो पर्यावरण के साथ सामंजस्य बनाए।
उद्योग हों, पर प्रदूषण नियंत्रण के साथ,
खेती हो, पर जैविक और रासायनिक मुक्त,
निर्माण हो, पर हरियाली को साथ लेकर
8. ऊर्जा का वैकल्पिक उपयोग
सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, जल ऊर्जा का अधिकतम उपयोग
,फॉसिल फ्यूल से हटकर स्वच्छ ऊर्जा की ओर बढ़ना
ऊर्जा संरक्षण: LED बल्ब, बिजली की बचत, सार्वजनिक परिवहन का उपयोग
9. जल संरक्षण
वर्षा जल संचयन,जल रिसायक्लिंग
,टपक सिंचाई जैसी तकनीकों का प्रयोग
10. वृक्षारोपण और वनों का संरक्षण
“एक व्यक्ति, एक वृक्ष” नारा व्यवहार में लाना,
अवैध कटाई पर रोक,वनों को जैव विविधता पार्कों में परिवर्तित करना
11. अपशिष्ट प्रबंधन और पुनर्चक्रण (Recycling)
घर-घर में कचरा पृथक्करण
,प्लास्टिक का पुनर्चक्रण,कम्पोस्टिंग,इलेक्ट्रॉनिक और जैविक कचरे का सही निस्तारण
12. जनजागरण और शिक्षा
स्कूलों में पर्यावरण शिक्षा अनिवार्य
बच्चों में प्रकृति के प्रति संवेदना का विकास
समाज में ‘हरित जीवनशैली’ को बढ़ावा।
13. नीति और शासन स्तर पर कड़े कदम
पर्यावरणीय कानूनों का कड़ाई से पालन
ग्रीन टेक्नोलॉजी को बढ़ावा
पर्यावरण रक्षक संगठनों को समर्थन
मेरी अंतिम चेतावनी
यदि तुमने अब भी नहीं सुधारा —
तो मैं फिर से संतुलन साध लूँगी, पर तुम इस प्रक्रिया का हिस्सा शायद न रहो।
मैंने डायनासोरों को भी देखा था,
तुम्हें भी देख रही हूँ —
लेकिन क्या तुम्हें अपनी कहानी स्थायी बनानी है या एक अध्याय बनकर रह जाना है?
मेरी अंतिम पुकार
प्रिय मानव!
मैंने तुम्हें जीवन दिया है — वायु, जल, अन्न और आश्रय। आज मैं संकट में हूँ। यदि तुम मेरी पीड़ा नहीं समझोगे, तो कल तुम्हारी संतति को इसके भयानक परिणाम भोगने होंगे।
अब भी समय है — “विकास” और “संरक्षण” का संतुलन बनाओ। अपने हृदय में मेरे लिए करुणा और कृतज्ञता जागाओ।
मुझे बचाओ, ताकि मैं तुम्हें बचा सकूँ।
✒️ सुशील शर्मा✒️