बॉयफ्रेंड संग मिलकर बेटे का धर्मांतरण: मां, प्रेमी समेत तीन को 10 साल की सजा

इंदौर: मध्य प्रदेश के इंदौर जिला कोर्ट ने चर्चित धर्मांतरण मामले में एक महिला, उसके प्रेमी और एक अन्य सहयोगी को 10 साल की कठोर सजा सुनाई है। आरोपियों ने महिला के आठ साल के बेटे का जबरन धर्म परिवर्तन कराया, उसकी खतना करवाई और उसे मदरसे में पढ़ाई के लिए भेज दिया। कोर्ट ने इस कृत्य को गंभीर अपराध मानते हुए तीनों आरोपियों पर पचास हजार के जुर्माने के साथ अन्य धाराओं में पांच-पांच हजार का अतिरिक्त दंड भी लगाया है।
क्या है पूरा मामला?
मामला राजस्थान के रहने वाले महेश नाहटा की शिकायत पर शुरू हुआ। उन्होंने इंदौर के खजराना थाने में अपनी पत्नी प्रार्थना, उसके प्रेमी इलियास और एक अन्य सहयोगी जफर के खिलाफ केस दर्ज कराया। महेश के अनुसार, उसकी पत्नी अपने प्रेमी के साथ भाग गई थी और बेटे को जबरन मुस्लिम धर्म अपनाने पर मजबूर किया गया।
महेश का आरोप था कि बेटे का जबरन खतना करवा दिया गया और उसे मदरसे में दाखिला दिलाया गया, ताकि उसे इस्लामिक शिक्षा दी जा सके।
जैन समाज और संतों ने जताया था विरोध
मामले के उजागर होने के बाद जैन समाज और जैन मुनियों ने तीखा विरोध किया। भाजपा के वरिष्ठ नेता और वर्तमान कैबिनेट मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने भी इस घटना पर चिंता जताते हुए ट्वीट कर कार्रवाई की मांग की थी।
पुलिस जांच और सुनवाई में क्या हुआ?
जैन समाज के आक्रोश और घटना की गंभीरता को देखते हुए पुलिस ने प्रार्थना, इलियास और जफर के खिलाफ मामला दर्ज कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया। इस दौरान—
- बच्चे की जबरन खतना की मेडिकल रिपोर्ट
- महिला के स्वयं धर्म परिवर्तन करने के सबूत
- बच्चे को मदरसे में भेजने से जुड़े दस्तावेज
को कोर्ट में पेश किया गया।
आरोपियों ने कई बार जमानत की अर्जी दी, लेकिन कोर्ट ने हर बार खारिज कर दिया।
18 महीने बाद आया फैसला
करीब 18 महीने तक चली सुनवाई के बाद माननीय न्यायाधीश नवम सत्र जितेंद्र सिंह कुशवाह ने प्रार्थना, इलियास और जफर को 10-10 साल की कठोर सजा सुनाई। इसके अलावा—
- प्रत्येक आरोपी को 50,000 रुपये का अर्थदंड
- अतिरिक्त धाराओं के तहत 5,000 रुपये का जुर्माना लगाया गया।
- बच्चे को उसके पिता महेश नाहटा को सौंप दिया गया।
सख्त कानून और समाज में संदेश
इंदौर कोर्ट का यह फैसला धर्मांतरण से जुड़े मामलों में एक सख्त संदेश माना जा रहा है। मध्य प्रदेश सरकार ने पहले ही धर्मांतरण विरोधी कानून लागू किया है, और यह मामला इस कानून के तहत कड़ी सजा दिए जाने के प्रमुख उदाहरणों में शामिल हो गया है।
इस फैसले से पीड़ित पिता और जैन समाज को न्याय मिला है, वहीं यह घटना धर्मांतरण से जुड़े अपराधों पर प्रशासन की सख्ती को भी दर्शाती है।