ओशो लीला आश्रम में हुआ तीन दिवसीय ध्यान शिविर आयोजन
ओशो लीला आश्रम में हुआ तीन दिवसीय ध्यान शिविर आयोजन
गाडरवारा। विश्व प्रसिद्ध दार्शनिक दाशनिक एवं आध्यात्मिक गुरु आचार्य रजनीश ओशो की क्रीड़ा स्थली एवं स्थानीय ओशो लीला आश्रम में 19 जनवरी मृत्यु महोत्सव के उपलक्ष्य में तीन दिवसीय ध्यान का आयोजन स्वामी ध्यान आकाश के सानिध्य में संपन्न हुआ जिसमें स्थानीय एवं बाहर से आए हुए ओशो सन्यासियों ने शिविर के दौरान सक्रिय ध्यान ,नाद ब्रह्म, विपश्यना, साक्षी, कुंडलिनी ध्यान, व्हाइट रूप ब्रदर हुड सत्संग संगीत नृत्य ओशो प्रवचन माला श्रवण सहित ओशो की विभिन्न ध्यान विधियों का आनंद पूर्ण रसपान किया गया ।
ज्ञात हो की ओशो की प्रसिद्ध किताबों में सुमार में मृत्यु सिखाता हूं जिसकी प्रवचन माला में बताया गया कि जन्म और मृत्यु के बीच ही जीवन का होना होता है जो की शाश्वत सत्य है ध्यान विपश्यना और समाधि इन्हीं मार्गो से बुद्ध महावीर बुद्धत्व को उपलब्ध हुए ओशो का मानना है कि जब जन्म महोत्सव में हो सकता है तो मृत्यु महोत्सव मय क्यों नहीं हो सकती है जन्म और मृत्यु की बागडोर श्वास पर निर्भर करती है जन्म का मतलब श्वास का प्रारब्ध मृत्यु का मतलब सांसों का अंत होना जीवन का ठहर जाना और शरीर की विदाई का हो जाना इसी मान्यता के चलते ओशो के सन्यासी ओशो के जन्म और मृत्यु दिवस को महोत्सव के रूप मनाते हैं और अपने सद्गुरु ओशो को स्मरण करते हुए उनकी ध्यान विधियों का रसपान कर आनंद पूर्ण आत्मसात करते हैं ओशो रजनीश का जन्म 11 दिसंबर 1931 में रायसेन जिला के छोटे से कस्बा कुछबाड़ा ननिहाल में हुआ था उनका बचपन का नाम रजनीश चंद्र मोहन जैन था गाडरवारा उनकी क्रीड़ा, लीला स्थली रही एवं आध्यात्मिक प्रारब्ध रहा रजनीश ओशो की मृत्यु 19 जनवरी 1990 में हुई उसी दिन ओशो इंटरनेशनल कम्यून पुणे में महोत्सव में उनके शरीर को अंतिम विदाई दी गई ।