मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी द्वारा “सिलसिला” कार्यक्रम का आयोजन, पं. प्रेमनारायण त्रिपाठी और सैयद क़ासिम अली को दी श्रद्धांजलि

गाडरवारा। मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी, संस्कृति परिषद, संस्कृति विभाग के तत्वावधान में ज़िला अदब गोशा नरसिंहपुर द्वारा “सिलसिला” कार्यक्रम के तहत पं. प्रेमनारायण त्रिपाठी एवं सैयद क़ासिम अली की स्मृति में श्रद्धांजलि एवं रचना पाठ का आयोजन किया गया। यह कार्यक्रम शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, गाडरवारा के ऑडिटोरियम में ज़िला समन्वयक अनीस शाह के सहयोग से संपन्न हुआ। कार्यक्रम में जिले एवं राज्य के प्रतिष्ठित साहित्यकारों, कवियों एवं गणमान्य अतिथियों की उपस्थिति रही।
कार्यक्रम की मुख्य बातें
इस अवसर पर उर्दू अकादमी की निदेशक डॉ. नुसरत मेहदी ने कहा कि “सिलसिला” कार्यक्रम के माध्यम से साहित्यिक विभूतियों के योगदान को याद किया जा रहा है, जो उर्दू अकादमी की एक सार्थक पहल है। पूर्व में उर्दू जगत में इस प्रकार के आयोजन नहीं होते थे, लेकिन अब भाषा और साहित्य के उन्नयन के लिए यह एक महत्वपूर्ण प्रयास है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार कुशलेंद्र श्रीवास्तव ने की, जबकि मुख्य अतिथि नगरपालिका अध्यक्ष शिवाकांत मिश्रा एवं विशिष्ट अतिथि जबलपुर के वरिष्ठ शायर मुख़्तार नादिर, मिनेंद्र डागा, प्रो. जवाहर शुक्ल, कीरत सिंह पटैल, नगेन्द्र त्रिपाठी एवं सूफ़ी गायक मनीष शुक्ला मंच पर मौजूद रहे।
साहित्यिक विभूतियों का स्मरण
कार्यक्रम में जिले के प्रमुख साहित्यकारों शेख ज़फ़र ख़ान एवं वेणीशंकर पटेल ने पं. प्रेमनारायण त्रिपाठी और सैयद क़ासिम अली के जीवन और उनके योगदान पर प्रकाश डाला।
शेख ज़फ़र ख़ान ने बताया कि सैयद क़ासिम अली एक महान स्वतंत्रता सेनानी एवं साहित्यकार थे। उन्होंने हिन्दी, उर्दू और संस्कृत में गहरी पकड़ बनाई और अंग्रेज़ शासन में डिप्टी इंस्पेक्टर ऑफ स्कूल्स के पद पर कार्य किया, लेकिन गांधीजी के प्रभाव में आकर 1930 में नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और स्वतंत्रता संग्राम में योगदान दिया। वे कई बार जेल भी गए और आजीवन राष्ट्रसेवा में संलग्न रहे।
वेणीशंकर पटेल ने पं. प्रेमनारायण त्रिपाठी के व्यक्तित्व और उनके योगदान पर प्रकाश डालते हुए बताया कि वे एक आदर्श शिक्षक थे जिन्हें राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उनका जन्म 9 जनवरी 1944 को गाडरवारा तहसील के बम्हौरी (कला) में हुआ था। उन्होंने हिन्दी साहित्य सम्मेलन एवं राष्ट्रभाषा प्रचार समिति वर्धा के लिए आजीवन कार्य किया और शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
ग़ज़ल संग्रह विमोचन एवं रचना पाठ
कार्यक्रम के दौरान अनीस शाह के तीसरे ग़ज़ल संग्रह “ज़िक्र तुम्हारा” का विमोचन किया गया। इसके बाद काव्य एवं ग़ज़ल पाठ का आयोजन हुआ, जिसमें जिले और आसपास के कई शायरों और कवियों ने अपनी रचनाएँ प्रस्तुत कीं।
प्रमुख प्रस्तुतियाँ:
- मुख़्तार नादिर – “अब तो ग़ैरों से नहीं अपनों से बचना है हमें, आज फिर नज़दीक से छल होते होते रह गया।”
- अनीस शाह – “लहू सींचा है इस मिट्टी में कुछ ऐसा शहीदों ने कि फ़स्लें सरफ़रोशी की वतन में लहलहाती हैं।”
- धर्मेन्द्र आज़ाद – “उसने आँखों में रखा अश्क बना कर मुझको, चाहता तो वो मुझे ख़्वाब बना सकता था।”
- गफ्फार भारती – “ऐसे अंदाज़ से काटे हैं उसने मेरे पर, होके पिंजरे से भी आज़ाद कहां जाऊँगा।”
- ज्योति श्रीवास्तव – “अपने अरमान क़त्ल करके ही रंग ख़्वाबों में भर रही हूँ मैं।”
- विजय नामदेव ‘बेशर्म’ – “वक़्ते-रुख़सत भी कब रहा आसान, चाय वो भी बना के बैठ गए।”
- सचिन नेमा – “जान कर सौदा किया है बेवफ़ा से, ज़ख्म देगी ये तिज़ारत सब पता है।”
- योगेंद्र सिंह ‘योगी’ – “तुम हो रौशन दिया तो ऐसा करो, कुछ दिये तुम भी अब करो रौशन।”
इस अवसर पर ख़लील करेलवी, शील दुबे, पोषराज मेहरा ने भी अपनी रचनाएँ प्रस्तुत कीं।
कार्यक्रम का समापन
कार्यक्रम का संचालन अनीस शाह एवं प्रफुल्ल दीक्षित ने किया। अंत में अनीस शाह ने सभी अतिथियों, साहित्यकारों, शायरों एवं श्रोताओं का आभार व्यक्त किया और कहा कि “यह आयोजन साहित्य और संस्कृति को सहेजने का एक प्रयास है, जिसे आगे भी जारी रखा जाएगा।”