कलयुगी बेटे ने मां की जमीन बेची, अस्पताल में छोड़कर हुआ फरार, बुजुर्ग मां की करुणा भरी कहानी- बेटी ने निभाया फर्ज
बुजुर्ग मां की करुणा भरी कहानी, अस्पताल में लाचार पड़ी रही – बेटी ने अपनाया, प्रशासन ने की मदद

गाडरवारा। इस दुनिया में मां से बढ़कर कोई रिश्ता नहीं, लेकिन जब वही संतान अपनी जननी को ठुकरा दे, तो इससे बड़ा पाप कोई नहीं हो सकता। गाडरवारा के सिविल अस्पताल में एक 95 वर्षीय बुजुर्ग महिला लाचार हालत में कई दिनों तक पड़ी रहीं। न वे खुद से चल सकती थीं, न किसी से कुछ मांग सकती थीं। जो भी उन्हें देखता, तरस खाकर खाना-पानी दे देता, लेकिन उनके अपने बेटे ने उन्हें अस्पताल में भर्ती करवा कर बेसहारा छोड़ दिया।
कैसे सामने आया मामला?
बीते कुछ दिनों से सिविल अस्पताल के अंदर और बाहर एक बुजुर्ग महिला को लाचार हालत में बैठे देखा जा रहा था। वो इतनी कमजोर थीं कि खुद से चल भी नहीं सकती थीं। पहले तो लोगों को लगा कि वे किसी मरीज की रिश्तेदार हैं, लेकिन जब देखा गया कि कोई भी उन्हें देखने नहीं आ रहा, तो अस्पताल प्रशासन को इस पर संदेह हुआ।
नवागत अस्पताल अधीक्षक डॉ. राकेश बोहरे को जब इस बारे में बताया गया तो उन्होंने तत्काल इस मामले की जांच शुरू करवाई। पूछताछ के बाद पता चला कि महिला का नाम शांतिबाई साहू है और वे जबलपुर की रहने वाली हैं। सबसे चौंकाने वाली बात यह थी कि उनके ही बेटे ने उनकी जमीन बेच दी थी और फिर उन्हें अस्पताल में भर्ती कराकर फरार हो गया।
अकेली मां को किसने सहारा दिया?
डॉ. बोहरे की पहल के बाद महिला के परिजनों को खोजने का प्रयास किया गया। जानकारी मिली कि उनकी बेटी अंगूरी बाई बगासपुर गोटगांव में रहती हैं। इसके अलावा उनके पुत्र राहुल साहू (बगासपुर), मनोज साहू (नरसिंहपुर) भी परिवार में हैं। अस्पताल प्रशासन ने इन सभी को संपर्क कर रविवार को अस्पताल बुलाया।
जब परिजन अस्पताल पहुंचे तो डॉक्टरों ने उन्हें मां की जिम्मेदारी समझाने की कोशिश की। शुरुआत में परिजन उन्हें साथ ले जाने को तैयार नहीं थे, लेकिन जब उन्हें कानूनी और सामाजिक जिम्मेदारी का अहसास कराया गया, तब बेटी ने अपनी मां को अपनाने का फैसला किया।
बेटे की बेरुखी, बेटी की ममता
पूछताछ में यह सामने आया कि महिला का बेटा अपनी मां की जमीन बेचकर उन्हें बेसहारा छोड़ चुका था। जब उनसे सवाल किए गए, तो कोई ठोस जवाब नहीं मिला। लेकिन बेटी ने ममता दिखाई और मां को घर ले जाने के लिए तैयार हो गई।
इसके बाद, रविवार को ही 108 एंबुलेंस के जरिए वृद्धा को बेटी के घर भेजा गया।
अस्पताल प्रशासन और पुलिस का योगदान
इस मानवीय कार्य में अस्पताल प्रशासन, पुलिस और स्टाफ का विशेष योगदान रहा।
- अस्पताल अधीक्षक डॉ. राकेश बोहरे ने पहल कर इस पूरे मामले को सुलझाया।
- अस्पताल चौकी के प्रधान आरक्षक राजकुमार दुबे ने लगातार कई दिनों तक बुजुर्ग महिला को खाना-पानी दिया और परिजनों का पता लगाने में मदद की।
- अस्पताल के ड्यूटी डॉक्टर, गार्ड देवेश रजक, सरमन कोरी, अस्पताल चौकी पुलिस स्टाफ और जीवनलाल ने भी पूरी प्रक्रिया में सहयोग किया।
डॉ. बोहरे की अपील – बुजुर्गों की सेवा करें, उन्हें न छोड़ें
अस्पताल अधीक्षक डॉ. बोहरे ने इस घटना से सबक लेने की अपील करते हुए कहा—
“हमारे समाज में बुजुर्ग हमारी जिम्मेदारी हैं। माता-पिता के बिना हमारा अस्तित्व संभव नहीं, लेकिन अगर हम उन्हें ही दर-दर भटकने के लिए छोड़ देंगे, तो यह हमारे नैतिक पतन का संकेत है। समाज को ऐसी घटनाओं से सीख लेनी चाहिए और बुजुर्गों की देखभाल करनी चाहिए।”
पुलिस का संदेश – बुजुर्गों को बेसहारा छोड़ने पर होगी कार्रवाई
अस्पताल चौकी के प्रधान आरक्षक राजकुमार दुबे ने भी कहा कि—
“किसी भी बुजुर्ग को इस तरह लावारिस छोड़ना न सिर्फ अमानवीय है, बल्कि कानूनी अपराध भी है। अगर ऐसे मामलों की शिकायत मिलेगी, तो दोषियों पर कार्रवाई की जाएगी।”
क्या कहता है कानून?
- भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 125 के तहत माता-पिता को बेसहारा छोड़ना अपराध है।
- वरिष्ठ नागरिक देखभाल एवं कल्याण अधिनियम, 2007 के तहत बुजुर्गों की देखभाल करना कानूनी रूप से अनिवार्य है।
- यदि कोई संतान अपने माता-पिता की देखभाल करने से इनकार करती है, तो उनके खिलाफ कानूनी कार्यवाही की जा सकती है।
फिलहाल, शांति बाई साहू अपनी बेटी के घर सुरक्षित हैं, लेकिन यह घटना हर उस व्यक्ति के लिए एक चेतावनी है, जो अपने बुजुर्ग माता-पिता की उपेक्षा करता है।