नरसिंहपुरमध्य प्रदेशराज्य

पत्रकार अभय हिंदुस्तानी की भूख हड़ताल: पत्रकारों का अनिश्चितकालीन धरना शुरू, प्रशासन पर सवाल

पत्रकार अभय हिंदुस्तानी की भूख हड़ताल: पत्रकारों का अनिश्चितकालीन धरना शुरू, प्रशासन पर सवाल

नरसिंहपुर। जिले में पत्रकारों को खबरें प्रकाशित करने के कारण लगातार मिल रही धमकियों और हमलों के खिलाफ वरिष्ठ पत्रकार अभय बानगात्री (हिंदुस्तानी) ने 2 जनवरी से भूख हड़ताल शुरू कर दी है। साथ ही, जिले के पत्रकारों ने अनिश्चितकालीन धरना देकर प्रशासन और सरकार से ठोस कदम उठाने की मांग की है।

मामले की पृष्ठभूमि

  • पत्रकारों को धमकियां मिलने और हमलों की घटनाओं को लेकर पुलिस और प्रशासन को कई ज्ञापन दिए जा चुके हैं।
  • धमकी देने वालों के दो मोबाइल नंबरों की लोकेशन ट्रेस की जा चुकी है, लेकिन अब तक उनकी GDR (जियो डिटेल रिकॉर्ड) और CDR (कॉल डिटेल रिकॉर्ड) निकालने में पुलिस नाकाम रही है।
  • धमकी देने वालों के इरादों और उनके पीछे मौजूद ताकतों का अब तक खुलासा नहीं हुआ है।

प्रमुख मांगें

1. प्रदेश में पत्रकार प्रोटेक्शन एक्ट लागू किया जाए।

2. धमकी देने वालों के नंबरों की GDR और CDR निकालकर उनकी पहचान और इरादों का खुलासा किया जाए।

3. अब तक पुलिस द्वारा की गई कार्रवाई को सार्वजनिक किया जाए।

4. पत्रकारों पर हो रहे हमलों और धमकियों को रोकने के लिए सख्त कदम उठाए जाएं।

प्रशासन की चुप्पी पर सवाल

पत्रकार संगठनों ने प्रशासन की निष्क्रियता और पुलिस की धीमी कार्यवाही पर गंभीर सवाल उठाए हैं।

  • धमकी देने वालों की लोकेशन मिल जाने के बावजूद उनकी पहचान नहीं हो पाना प्रशासन की कार्यक्षमता पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है।
  • अब तक जिला प्रशासन की ओर से कोई प्रेस कॉन्फ्रेंस या प्रेस नोट जारी नहीं किया गया, जिससे पत्रकारों में आक्रोश बढ़ रहा है।

पत्रकारों का समर्थन

  • पत्रकार संगठनों ने भूख हड़ताल पर बैठे अभय हिंदुस्तानी के समर्थन में उच्च अधिकारियों को कई ज्ञापन सौंपे हैं।
  • पत्रकारों ने स्पष्ट कर दिया है कि जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं होतीं, तब तक धरना और हड़ताल जारी रहेगी।

लोकतंत्र की रक्षा का सवाल

पत्रकार किसी भी लोकतंत्र का चौथा स्तंभ हैं। उनके ऊपर हो रहे हमले और धमकियां केवल पत्रकारिता को नहीं, बल्कि लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को भी कमजोर कर रही हैं।

शासन-प्रशासन के लिए चुनौती

यह मामला न केवल पत्रकारों की सुरक्षा का है, बल्कि शासन-प्रशासन की जिम्मेदारी और जनता के प्रति जवाबदेही का भी सवाल खड़ा करता है।

  • यदि जल्द ही इस मुद्दे का समाधान नहीं हुआ, तो यह आंदोलन व्यापक रूप ले सकता है।
  • प्रशासन और सरकार के लिए यह समय है कि वे पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करें और उनकी मांगों पर ठोस कदम उठाएं।

निष्कर्ष

पत्रकारों की सुरक्षा केवल उनका हक नहीं, बल्कि एक जिम्मेदार लोकतंत्र का कर्तव्य है। अब देखना यह है कि प्रशासन इस चुनौती को कितनी गंभीरता से लेता है और इस संकट का समाधान कैसे करता है।

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