ओशो लीला आश्रम में मनाया गया ओशो का जन्मदिवस, तीन दिवसीय ध्यान शिविर का आयोजन
ओशो लीला आश्रम में मनाया गया ओशो का जन्मदिवस, तीन दिवसीय ध्यान शिविर का आयोजन

ओशो लीला आश्रम में मनाया गया ओशो का जन्मदिवस, तीन दिवसीय ध्यान शिविर का आयोजन
गाडरवारा। विश्व प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु और दार्शनिक आचार्य रजनीश ओशो का जन्मदिवस स्थानीय ओशो लीला आश्रम में धूमधाम से मनाया गया। इस अवसर पर तीन दिवसीय ध्यान शिविर का आयोजन किया गया, जिसमें क्षेत्रीय और बाहरी शहरों से आए संन्यासियों ने भाग लिया।
शिविर का शुभारंभ गीत-संगीत और केक काटने के साथ किया गया। संन्यासियों ने ओशो के जीवन और उनके विचारों को याद करते हुए विभिन्न ध्यान विधियों में भाग लिया, जिसमें कुंडलिनी, विपश्यना, व्हाइट रोब, और ब्रदरहुड ध्यान जैसी विधियां शामिल थीं। साथ ही, ओशो के प्रवचनों का श्रवण और सत्संग भी हुआ।
मृत्यु बोध स्थल पर अर्पित की गई श्रद्धांजलि
आश्रम में स्थित मृत्यु बोध स्थल, जहां ओशो को 14 वर्ष की आयु में मृत्यु का बोध हुआ था, संन्यासियों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र रहा। यहां उन्होंने ओशो के स्मरण में ध्यान किया और अपने अनुभव साझा किए।
जन्म और मृत्यु महोत्सव दोनों मनाते हैं संन्यासी
ओशो का मानना था कि जैसे जन्म उत्सव मनाया जाता है, वैसे ही मृत्यु उत्सव भी मनाना चाहिए। इसी दृष्टिकोण के चलते उनके संन्यासी दोनों ही अवसरों को पूरे उत्साह से मनाते हैं।
ओशो का जीवन और योगदान
आचार्य रजनीश ओशो का जन्म 11 दिसंबर 1931 को रायसेन जिले के कुछवाड़ा गांव में हुआ था। दर्शनशास्त्र में गोल्ड मेडल प्राप्त करने के बाद उन्होंने जबलपुर में प्रोफेसर के रूप में सेवाएं दीं। वहीं से उनकी आध्यात्मिक यात्रा प्रारंभ हुई। जबलपुर में मोल श्री वृक्ष के नीचे उन्हें आध्यात्मिक संबोधि प्राप्त हुई और यहीं से उनके प्रवचनों का सिलसिला शुरू हुआ।
संन्यासियों का उत्साह देखते ही बना
ओशो लीला आश्रम में तीन दिवसीय शिविर के दौरान संन्यासियों का उत्साह देखते ही बनता था। सभी ने ध्यान विधियों में भाग लेकर आनंदित अनुभव किया और ओशो से जुड़ी स्मृतियों को साझा किया। शिविर का संचालन स्वामी ध्यान आकाश और मा प्रेम गंगा के सानिध्य में संपन्न हुआ।
इस आयोजन ने न केवल ओशो के विचारों और शिक्षाओं को पुनर्जीवित किया, बल्कि उनके अनुयायियों को एकजुट होकर आध्यात्मिक यात्रा में सहभागी होने का अवसर भी प्रदान किया।