मध्य प्रदेशराज्यरानीपिपरिया

“मेरी ज़मीन मेरी नहीं रही…” – पीड़ित मिश्रीलाल कुशवाहा की गुहार, लेकिन प्रशासन अब तक खामोश

विशेष संवाददाता राकेश पटेल इक्का नर्मदापुरम

“हमने सिर्फ एक प्रार्थना की थी – हमारी ज़मीन हमें वापस दिला दी जाए। लेकिन जब न्याय की उम्मीद ही बुझ जाए, तो आदमी कहां जाए?”
— मिश्रीलाल कुशवाहा, पीड़ित

नर्मदापुरम जिले की तहसील सोहागपुर के ग्राम रानीपिपरिया के निवासी मिश्रीलाल कुशवाहा और उनके परिवार की ज़िंदगी पिछले कई महीनों से अराजकता और पीड़ा में गुजर रही है। प्रशासनिक उदासीनता और दबंगों की मनमानी के कारण यह परिवार आज अपनी ही ज़मीन से बेदखल हो चुका है।

1967 क्रमांक से जारी आवेदन – प्रशासन के पास भी पहुंची थी गुहार

13 जून 2023 को मिश्रीलाल कुशवाहा द्वारा अनुविभागीय अधिकारी, विकासखण्ड सोहागपुर को एक लिखित आवेदन क्रमांक 1967 प्रस्तुत किया गया। इस आवेदन में उन्होंने स्पष्ट रूप से उल्लेख किया:

“मेरी भूमि, खसरा नंबर 88/3, रकबा 30 डिस्मिल ग्राम रानीपिपरिया में स्थित है। इस पर ग्राम के ही कुछ दबंग व्यक्ति – मोहनलाल कुशवाहा, भूरा कुशवाहा, भाईजी कुशवाहा और मोहनसिंह कुशवाहा – ने बलपूर्वक कब्जा कर लिया है। जब मैंने विरोध किया, तो मुझे मारने-पीटने की धमकी दी गई।”

यह केवल अतिक्रमण का मामला नहीं है, बल्कि यह ग्रामीण स्तर पर व्याप्त दबंगई, भूमि माफियागिरी और प्रशासनिक ढिलाई की जमीनी तस्वीर पेश करता है।

“हमने सब किया, पर ज़मीन नहीं मिली”

इस आवेदन में मिश्रीलाल और उनके साथ ख्यालीराम, बिन्द्राबाई, शांतिबाई, पार्वतीबाई और सुदामाबाई ने भी हस्ताक्षर कर यह मांग की कि उन्हें उनकी ज़मीन वापस दिलाई जाए। लेकिन एक साल से अधिक का समय बीत जाने के बावजूद, कोई निर्णायक कार्रवाई नहीं हुई।

हमने तहसील से लेकर एसडीएम तक, सब जगह आवेदन दिए। किसी ने हमारी बात गंभीरता से नहीं ली।”
— सुदामाबाई, परिवार की वरिष्ठ सदस्य

दबंगई और खौफ का माहौल

पीड़ित परिवार के अनुसार अतिक्रमणकारी खुलेआम धमकी देते हैं कि “जहां जाना हो जाओ, कुछ नहीं होगा।” यह कथन दर्शाता है कि किस तरह स्थानीय स्तर पर भू-माफिया प्रभावशाली बने हुए हैं और प्रशासन उनकी तरफ से आँखें मूँदे बैठा है।

प्रशासन की भूमिका पर सवाल

  • आवेदन क्रमांक 1967 जैसे आधिकारिक दस्तावेज को भी यदि नजरअंदाज कर दिया जाए, तो यह सामान्य नागरिकों में निराशा पैदा करता है।
  • तहसीलदार और एसडीएम स्तर पर की गई “कागजी कार्रवाई” सिर्फ औपचारिकता बनकर रह गई।
  • न तो अतिक्रमण हटाया गया, न ही अतिक्रमणकारियों के खिलाफ कोई सख्त कार्रवाई की गई।

न्यायालय की शरण में मजबूर पीड़ित

अब परिवार को स्थानीय न्यायालय का दरवाजा खटखटाना पड़ रहा है।

“हम किसान हैं। कोर्ट-कचहरी की न जानकारी है, न पैसा। लेकिन अब कोई रास्ता नहीं बचा है।”

समाज और सिस्टम के लिए एक सवाल

क्या एक किसान को अपनी ही ज़मीन के लिए ऐसे संघर्ष करने पड़ेंगे? क्या आवेदन क्रमांक, जांच रिपोर्ट और भू-स्वामित्व प्रमाण जैसे दस्तावेज सिर्फ रजिस्टर में दर्ज होकर रह जाएंगे?

निष्कर्ष:

मिश्रीलाल कुशवाहा और उनका परिवार आज भी उम्मीद लगाए बैठा है कि प्रशासन कभी तो जागेगा, कभी तो कोई अधिकारी उनकी ज़मीन को उनका अधिकार मानेगा। लेकिन जब सिस्टम जवाब नहीं देता, तब लोग सवाल उठाते हैं—और यही सवाल आज नर्मदापुरम के लोग पूछ रहे हैं।


आपके पास भी ऐसी ही कोई जनसमस्या है?
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