दूषित पानी का कारोबार: गर्मी में लोगों की प्यास के साथ सेहत से भी हो रहा खिलवाड़, जिम्मेदार अफसर बेखबर

संवाददाता राकेश पटेल इक्का
सोहागपुर।
गर्मियों की तपती धूप और बढ़ते तापमान में पानी हर किसी की सबसे बड़ी जरूरत बन गया है। लेकिन सोहागपुर क्षेत्र के शहरी व ग्रामीण इलाकों में लोग जो पानी पी रहे हैं, वो उनकी प्यास तो बुझा रहा है, लेकिन धीरे-धीरे सेहत को बीमार कर रहा है। क्षेत्र में तेजी से फैल रहा दूषित पानी का अवैध कारोबार प्रशासन की नाक के नीचे फल-फूल रहा है, लेकिन कार्रवाई के नाम पर सिर्फ आश्वासन ही मिलते हैं।
कैसे फैल रहा है गंदे पानी का यह धंधा
ब्लॉक के अंतर्गत सोहागपुर कस्बा, शोभापुर, सेमरी हरचंद और स्टेट हाईवे-22 के ढाबों व दुकानों पर खुलेआम नकली व दूषित पानी के पाउच और बोतलों की बिक्री हो रही है। कुछ असामाजिक तत्व घरों या अस्वच्छ जगहों पर स्थानीय स्तर पर पानी भरकर प्लास्टिक की थैलियों या दोबारा इस्तेमाल की गई बोतलों में सील कर इन्हें “प्योर” बताकर बेच रहे हैं।
इन बोतलों पर न तो कोई ब्रांड होता है, न ही निर्माण या एक्सपायरी की जानकारी। बावजूद इसके ये 20 से 30 रुपये में धड़ल्ले से बिक रही हैं।
अधिकारियों की नाकामी और खानापूर्ति
स्थानीय नागरिकों द्वारा कई बार शिकायत करने के बावजूद अधिकारियों द्वारा सिर्फ दिखावटी जांच की जाती है। नियमित निरीक्षण या नमूनों की सख्त जांच का कोई ठोस रिकॉर्ड नहीं है। जो सैंपल लिए भी जाते हैं, उनकी रिपोर्ट आम जनता के सामने नहीं आती और न ही दोषियों पर कार्रवाई होती है।
जिला खाद्य सुरक्षा अधिकारी का बयान
जिला खाद्य सुरक्षा अधिकारी जितेंद्र राणा ने बताया कि,
“समय-समय पर बाजार में बिक रहे खाद्य पदार्थों और पानी की गुणवत्ता की जांच की जाती है। हाल ही में एक वाटर प्लांट से सैंपल लिए गए हैं, जिसकी रिपोर्ट प्रक्रियाधीन है।”
लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि कई अवैध प्लांट्स बिना रजिस्ट्रेशन, मानक उपकरणों या फिल्ट्रेशन तकनीक के काम कर रहे हैं, जो सीधे लोगों की जान से खिलवाड़ है।
दूषित पानी के दुष्परिणाम
- पेट की बीमारियां (डायरिया, फूड पॉइजनिंग)
- वायरल संक्रमण
- बच्चों और बुजुर्गों में तेज बुखार और कमजोरी
- अस्पतालों में बढ़ते मरीज
समाधान क्या हो सकता है?
- सख्त निरीक्षण और नियमित जांच: हर पखवाड़े मार्केट में बिकने वाले पानी की जांच अनिवार्य की जाए।
- लाइसेंस की अनिवार्यता: अवैध जल संयंत्रों को तुरंत बंद किया जाए।
- जनजागरूकता: आम जनता को शुद्ध और अशुद्ध पानी की पहचान करना सिखाया जाए।
- दोषियों पर सख्त कार्रवाई: केवल जुर्माना नहीं, बल्कि कानूनी कार्यवाही की जाए ताकि दोबारा ऐसा न हो।
निष्कर्ष:
प्यास बुझाने के नाम पर ज़हर परोसा जा रहा है और प्रशासनिक लापरवाही इसके लिए बराबर की जिम्मेदार है। अब देखने वाली बात होगी कि क्या प्रशासन सिर्फ आश्वासन तक सीमित रहेगा या इस बार कोई ठोस कदम उठाएगा।