गाडरवारामध्य प्रदेशराज्य

सर्वोत्तम विद्यालय है गर्भावस्था: नित्यानंद गिरी, सोना दहार आश्रम साईखेड़ा 

सर्वोत्तम विद्यालय है गर्भावस्था: नित्यानंद गिरी, सोना दहार आश्रम साईखेड़ा 

मनुष्य जितना माँ के गर्भ में 9 माह में सीखता है उतना 90 वर्ष में (पूरे जीवन) में नहीं सीख सकता l गर्भवति माँ जो खाती है, सोचती है, विचार करती है, बोलती है, जो वस्त्र पहनती है, जैसा साहित्य पढ़ती है, और जो दृश्य (फिल्म) देखती है , उस सारी बातों का प्रभाव गर्भस्थ बालक बालिकाओ पर निश्चित पढता है l और वह वैसा ही स्वभाव लेकर जन्म लेता है l इसीलिए सन्तान अच्छी चाहिए तो पहिले माँ को बुराई का त्याग करना चाहिए l उक्त विचार श्री सोना दहार आश्रम (पीपरपानी) में 108श्री विद्यानंद अवधूत जी महाराज के सान्निध्य में चल रही भागवत कथा के तीसरे दिन, ऋषिकेश से आए स्वामी सदाशिव नित्यानंद गिरी जी महाराज ने व्यक्त किए l

स्वामी जी ने कहा जगत में जितने महान पुरुष और महान नारियां हुए हैं, वो सब माँ के पेट में ही महान बन गए l बाहर की शिक्षा का, संगति का भी प्रभाव होता है लेकिन उतना नहीं, जितना गर्भावस्था का होता है l ध्रुव प्रह्लाद, नामदेव नानक कबीर सूर तुलसी मीरा ये सब माँ के पेट में ही भक्त बन गए l बड़े बड़े सूर अर्जुन कर्ण भीष्म माँ के पेट में ही बन गए l मेने सत्संग में सुना है कि महाराणा प्रताप, वीर शिवाजी, रानी लक्ष्मीबाई आदि जब गर्भ में थे तो इनकी माताओं ने महाभारत का श्रवण किया था, इसीलिए ये महान सूर पैदा हुए l

भक्त प्रहलाद जब माता सुनीति के पेट में थे तो उस समय माँ बहुत भक्ति करती थी, सत्संग करती थी, गाय की सेवा करती थी.l पहिले घर की दादी नानी जो माँ बनने वाली वहन, बेटी, बहु होती थी उन्हें गीता रामायण पढाती थीं, सत्संग में ले जाती थी l उनके हाथ से दान कराती थीं, उनके संकल्प उनके विचार शुद्ध करने को बोलती थीं l उस समय घर का वातावरण बहुत अच्छा बनाया जाता था, उस बेटी को इर्ष्या द्वेष, काम क्रोध लोभ आदि विकारों से रहित किया जाता था l

इन्हीं सब से बड़ा होकर बालक अच्छा बन जाता था l ध्रुव जी ने 6 माह में भगवान को प्राप्त कर लिया lध्रुव जी राजा उत्तानपाद के बेटे है राजा की दो पत्नियां थी एक का नाम सुनीति और दूसरी का नाम सुरुचि था सुनीति के गर्भावस्था होने पर छोटी रानी सुरुचि ने राजा से कहकर दुर्भावना बस महल से बाहर उपवन में रखा भी भक्त ध्रुव का जन्म हुआ छोटे से बालक ध्रुव अपने पिता राजा उत्तानपाद जोकि सिंहासन पर अपनी दूसरी पत्नी सुरुचि के साथ बैठे हुए थे कि गोद में बैठने के लिए कोशिश करते है तब सुरुचि उनको धक्का देकर नीचे गिराती है और कड़े बचन बोलती है तब रोते हुए बालक ध्रुव अपनी मां सुनीति के पास आते हैं और मां की आज्ञा से भगवान की प्राप्ति के लिए जंगल में जाते है रास्ते में नारद जी भगवान प्राप्ति का उपदेश देते है कठिन तप कर ध्रुव जी को भगवान नारायण दर्शन देते है और वरदान में राज्य करने और अंत में अपने लोक में सर्वोच्च ऊंचे स्थान पर ध्रुवलोक की स्थापना करते हैं आज तीसरे दिन की कथा का समापन कथा आयोजक श्री भैयाराम जी द्वारा आभार व्यक्त किया कथा दिनांक 18 फरवरी नर्मदा जयंती तक चलेगी

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